बुधवार, 2 जुलाई 2008
कुछ कहने से पहले यह भी जान लें---
न्यायालय का आदेश ईश्वर का हुकुम। मगर इस संदर्भ में मैं एक घटना का जिक्र कर देना चाहूंगा। बात उस समय की है जब में उत्तरप्रदेश के औरैया जिले में एक प्रतिष्ठित अखबार का ब्यूरो चीफ था। उस समय न्यायालय से जुड़ी तमाम खबरें मैने धारावाहिक निकाली थी। उसमें एक डकैती की फाइल के चोरी होने और बाद मे उस फाइल के एक माननीय जज के ड्राइवर के पास उनकी ही गाड़ी से मिलने का समाचार भी था। मैं उन जज साहब का नाम भी लिख सकता हूं लेकिन यहां उसे बताना जरूरी नहीं समझता। तो, साहब उन खबरों के बाद मुझे डाक से एक चिट्ठी मिली। यह चिट्ठी जैसा की उस पर अंकित था उस समय के दुर्दांत डकैती जगजीवन परिहार की ओर से भेजी गई थी। इस चिट्ठी के साथ एक और चिट्ठी की फोटोकापी भी थी। यह चिट्ठी उन्हीं जज साहब ने जगजीवन को लिखी थी। इसमें लिखा गया था कि अगर जगजीवन इस रिपोर्टर यानी मुझे ठिकाने लगा दे तो 10 लाख रुपये देगा। दूसरी चिट्ठी जो कि जगजीवन की ओर से मुझे लिखी गई थी उसका लब्बोलुबाब यह था कि वह किसी पत्रकार को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। ऐसे में मेरी भलाई के लिए वह यह पत्र मुझे भेज रहा है। साथ ही एक पत्र पुलिस अधीक्षक भिंड को भी ताकि मेरी हिफाजत की जा सके।कुल मिलाकर इस पत्र के बाद में चुप नहीं बैठा। मै और मेरे एक वकील साथी इस पत्र को लेकर तत्कालीन एसएसपी दलजीत चौधरी, जिन्हें बाद में डकैतों के सफाए के लिए राष्ट्रपति पदक भी दिया गया के पास पहुंचे। भिड़ के एसपी जिनका नाम इस वक्त मुझे याद नहीं है से भी मिला। भिंड एसपी की बातों से हमें ऐसा लगा कि उन्हें इसके बारे में बहुत कुछ जानकारी है लेकिन वह कुछ छुपा रहे हैं। हालांकि उन्होंने मुझसे सावधान रहने को जरूर कहा। यहां यह जरूर बता देना चाहता हूं कि इस समय जगजीवन का गैंग भिड़ के आसपास ही था।दलजीत चौधरी ने शुरूआत में पत्र को काफी गंभीरता से लिया लेकिन बाद में वह भी धीरे पड़ गए। इस मामले मैं रिपोर्ट लिखाना चाहता था लेकिन वह नहीं लिखी गई।बाद मैं इन्हीं जब साहब के बारे में एक स्टोरी और मैने की। जज साहब जिस मकान में कुछ दिन किराएदार रहे उसका पुत्र गायब था। मकान मालिक का आरोप था कि जज के उनकी पुत्रवधू से नाजायज संबंध थे और जज साहब ने ही उसका मर्डर करा दिया था। यह पुत्र इन बुजुर्गों की एकमात्र संतान थी। हालांकि मेरी इस स्टोरी को बाद में स्टार ने भी चलाया। नतीजा यह हुआ कि जज साहब को निलंबित कर दिया गया। मगर मेरे नाम जगजीवन को सुपारी देने वाली उस चिट्ठी की सच्चाई अभी भी मेरे लिए रहस्य बनी हुई है। न्यायालय में मैने इस संबंध में पत्र भी दिया था लेकिन कुछ नहीं हुआ।मैरे कहने का मतलब है कि हर अच्छे बुरे में मीडिया के सिर बुराई का ठीकरा फोड़ने से पहले खुद की ओर देख लेना भी ठीक रहता है।ज्यादा क्या कहूं। कोर्ट चालू है.....पता नहीं कब कह दिया जाए मोहन जोशी हाजिर हो....
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1 टिप्पणी:
रोचक लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण। पतन हर क्षेत्र में जारी है।
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