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गुरुवार, 10 अप्रैल 2008

तो शुरू करें

चंबल के बीहड़ों का अपराध जगत में अपना एक इतिहास है। चंबल और उसकी सहायक नदियों से बने लगभग 6 लाख एकड़ भूमि पर पसरे खौफनाक बीहड़ अपराधियों की शरणस्थली रहे हैं। इलाके में प्रचलित बागी,दस्यू या डकैत और लूटेरे जैसे शब्द एक प्रतीक हैं-अपराध की दुनिया के आए ह्रास का। ये शब्द ही नहीं अपराधी मानसिकता का जीता जागता दस्तावेज हैं।
क्षेत्र में प्रचलित सबसे पुराना अपराधी संबोधन बागी अंग्रेजी शासनकाल में प्रचलित था। यह वह समय था जब अंग्रेजी शासन में जमींदारों के जुल्मोसितम से तंग होकर लोग व्यक्तिगत तौर पर बगावत कर चंबल की गोद में चले जाते थे। तब वह इनकी मांग थी। हर मुसीबत में रक्षा करने वाली। बीहड़ बागी के लिए मां का आंचल। इन लोगों ने ही पहली बार इस जमीन पर गोलियों की आवाज गुंजित की थी। ये लोग भले ही व्यक्तिगत आघातों के चलते बीहड़ में कूदे हों लेकिन दिलों में अंग्रेजी शासन और जमींदारों के खिलाफ विक्षोभ तो था ही। इस समय लोगों ने उनके इस काम को नाम दिया बगावत। प्रचलित दमन की व्यवस्था से हटकर खड़े होने का कदम और इस तरह बन गए वह बागी। इस वर्ग में बागी सन्यासी,बह्मचारी, पंडित गेंदा लाल दीक्षित।
इन बागियों से क्षेत्र की जनता को कभी कोई बड़ी असुविधा नहीं हुई। यह ग्रामीणों से संपर्क भी कम रखते थे। डकैती डालते थे तो केवल सरकारी खजाने या जमींदार को ही लूटते थे। मगर जनता से संबंध नहीं। इनमें से कई डकैत तो सीधे-सीधे आजादी के लिए लड़े भी, हालांकि आजादी का कुल जमा उनका कंसेप्ट अंग्रेजों को देश से निकाल भर देना था। गांव वालों के संपर्क में न रहने से इनमें के कइयों को ग्रामीणों से ही मुठभेड़ हुई फिर या तो वह पकड़े गए या मार डाले गए। ब्रह्मचारी और गेंदालाल दीक्षित के दल की भी ग्रामीणों से भिडंत हुई थी। इसमें से उनमें 35 साथी मारे गए थे। इस मुठभेड़ में गेंदालाल और ब्रह्मचारी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। यह लोग इस समय ग्वालियर में एक जगह डकैती डालने जा रहे थे। तो इस तरह बागी बने। अब इस बारे में और जानकारी के लिए बागी लिंक पर मिलेंगी जानकारी। इंतजार कीजिए........नमस्कार।

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