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शनिवार, 6 मार्च 2021

पर्यटन की उम्मीद जगाती खौफ की नदी



डेढ़ दशक पहले तक खौफ का पर्याय रही चंबल नदी आज पर्यटन की उम्मीद जगा रही है। प्रकृति प्रेमी के साथ सरकार की निगाह भी इस पर टिक गई है। दस्यु दलों को पनाह देती रही देश की यह सबसे साफ नदियों में शुमार यह डाल्फिन, घड़ियाल और आठ तरह के कछुओं की शरणस्थली बन गई है। इसके किनारे विलुप्त श्रेणी में शुमार कई पक्षी भी डेरा डाले हुए हैं।
चंबल के बीहड़ हमेशा से लुभाते रहे हैं। मगर, दस्यु दलों के खौफ से लोग इसमें कदम रखते कांपते थे। करीब डेढ़ दशक पहले चंबल के बीहड़ से दस्यु दलों के सफाए और बाद में इटावा में लायन सफारी बनने के बाद यहां पर्यटन की संभावना को पर लग गए हैं। वर्ष 1979 में चंबल के राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश राज्य के पांच हजार 400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चंबल घड़ियाल वन्यजीव सेंक्चुरी घोषित किया गया था। इसके बाद चंबल में घड़ियाल और डाल्फिन की संख्या बढ़ने लगी। इसमें लायन सफारी के मिल जाने से पयर्टन का एक एेसा सर्किट तैयार हुआ है जो चंबल के बीहड को देखने की ख्वाहिश रखने वालों का ध्यान खींच रहा है। इटावा की लायन सफारी में एशियन शेर की संख्या 11 हो गई है। इससे, इटावा के पचनद से लेकर मध्यप्रदेश के मुरैना तक करीब 150 किलोमीटर चंबल के इलाके में प्रकृति के शौकीनों की आमदरफ्त बढ़ी है।
पूरे देश की नदियां जहां पानी की कमी और प्रदूषण की मार से जूझ रही हैं ऐसे संकट के समय में भी चंबल नदी उम्मीद जगा रही है। चंबल का पानी इस इलाके में साफ और गंधहीन है। मध्यप्रदेश प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक इसका पानी आज भी पीने योग्य पाया गया है। पानी में बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड का आकंडा बेहद कम है और घुलनशील आक्सीजन का स्तर मानक 4 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक यानी बेहतर पाया गया है। चंबल के पानी की यह संरचना डाल्फिन, घड़ियाल जैसे जलीय जीवों के साथ साइबेरियन पक्षियों को भा रही है।

यह नदी आज ऐसे जलचरों का आवास बनी है जिन्हें विलुप्त श्रेणी के ए वर्ग में दर्ज किया गया है। ए यानी ऐसा वर्ग जिस पर खतरा सबसे अधिक है। कई जलचर तो ऐसे है जो सिर्फ इसी नदी में पाए जाते हैं। आठ प्रजाति के कछुआ ढोंगेंका, टेटोरिया, ट्राइनेस, लेसीमान पंटाटा, चित्रा एंडका और इंडेजर, ओट्टर के साथ ही एलिगेटर की दो प्रजाति वाले घड़ियाल, मगर और गंगा डाल्फिन का चंबल स्थायी आवास बन चुकी है। इसके साथ ही ब्लैक बेलिएड टर्नस, सारस, क्रेन, स्ट्रॉक पक्षी इन नदी में कलरव करते हैं। स्कीमर पक्षी तो सिर्फ चंबल में ही पाया जाता है।
- शाह आलम, फाउंडर, चंबल फाउंडेशन

कहां, क्या देख सकते हैंः
- करीब 320 किस्म की देशी विदेशी चिड़िया पांच नदियों के संगम पचनद तट औरैया, इटावा, जालौन जिले की सीमा पर देखा जा सकता है।
-चंबल नदी में दुनियां के 80 फीसद घड़ियालो का बसेरा है। उदी, इटावा चंबल तट पर चंबल वैली बर्ड वाचिंग एंड क्रोकोडाइल रिसर्च सेंटर पर भी यह रोमांचकारी नज़ारा देख सकते हैं।
- आठ  किस्म के कछुए यहां देखने को मिलते हैं, जो दुर्लभ प्रजाति के हैं। इटावा के सहसो में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है।
- डॉल्फिन और मगरमच्छ आगरा के पिनाहट में भी बारहा दिखते हैं।
- अटेर, भिंड में बड़े पैमाने पर घड़ियाल चंबल तटों पर दिखते हैं। मुरैना में डॉल्फिन पॉइंट भी है।
- मुरैना(मध्यप्रदेश) के देवरी में घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुए की हेचरी भी है।


चंबल के पानी की स्थितिः
मप्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से 2017 में किए गए अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक मुरैना-धौलपुर के पास राजघाट चंबल के इलाके में चंबल का ए ग्रेड पानी है। नीमच से उज्जैन तक पानी बी से लेकर डी और ई ग्रेड का है। पीने योग्य पानी में हार्डनेस की उच्चतम मात्रा 1000 मिलीग्राम प्रति लीटर की तुलना में यह केवल 72 और मैग्नीशियम हार्डनेस केवल 68 है।



क्या है चंबलः
 करीब 960 किलोमीटर तक अविरल धार वाली इस नदी का इतिहास कम वैभवशाली नहीं रहा है। इंदौर के पास विंध्य की पहाड़ियों में मऊ स्थान से निकलकर उत्तर से दक्षिण की ओर बहने वाली यह नदी राजस्थान, मध्यप्रदेश की सीमा में 960 किलोमीटर बहने के बाद इटावा के पास यमुना को जीवन देती है। इसका नाम चर्मावती होने के पीछे कथा है कि वैदिक काल में राजा रंतिदेव ने यहां अग्निहोत्र यज्ञ कर इतने जानवरों की बलि दी कि इस नदी के किनारे चमड़े से भर गए। इन कारण इस नदी का नाम चर्मणी हुआ। तमिल भाषाओं में चंबल का अर्थ मछली भी है। इस नदी में कैटफिश करोड़ों की संख्या में आज भी मिलती हैं। पांचाल राज्य की द्रोपदी ने भी इस नदी का पानी पिया और उसकी पहल पर ही राजा द्रुपद ने पहली बार इस नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की पहल कर इसके किनारों को अपवित्र करने को निषेध कर दिया।

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