कोविड महामारी का भीषण प्रकोप जारी है। प्रतिदिन चार लाख से ज्यादा मरीज देशभर में निकल रहे हैं। जिनमें से लगभग 4 हजार की मौत हो रही है। यह आंकड़े वास्तविक आंकड़ों से काफी कम है। ऐसा विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह संख्या 4 गुना से 5 गुना ज्यादा हो सकती है। सही आंकड़े दर्शाए नहीं जा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से भी मुरैना जिले में कोविड से हुई मोतों का आंकड़ा एक सैकड़ा के करीब पहुंच गया है। जिनमें बड़ी संख्या युवाओं की है। महामारी आपदा जारी है । परंतु मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार इसकी आड़ में चंबल के बीहड़ की जमीन लूटने का "खेला" नई - नई साजिशें और षडयंत्र रच रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की सबलगढ़ तहसील के 10 गांवों की चंबल के बीहड़ की 600 हेक्टेयर जमीन ग्राम बधरेंटा में वन विभाग की भूमि पर लगाए जा रहे रक्षा अनुसंधान (डीआरडीओ) के प्रोजेक्ट के एवज में वन विभाग को आवंटित की है। जो चंबल के बीहड़ की भूमि आवंटित की गई है उस भूमि पर सबलगढ़ तहसील के ग्राम रेंमजा का पुरा ,रहू का गांव, खेरो, खिरकारी, लक्ष्मणपुरा, देवलपुरा ,डिगवार, अटार आदि गांवों के लगभग 1 हजार परिवार पीढ़ियों से काश्तकारी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। उन्होंने कुदाल, फावड़ों, हल बैलों और शारीरिक श्रम से ऊंचे ऊंचे बीहड़ों को समतल कर कृषि योग्य बनाया है। इन परिवारों को उजाडा जा रहा है । अभी हाल ही में अटार गांव के दर्जनभर परिवारों के आवासों को स्थानीय प्रशासन द्वारा तोड़ दिया गया। ट्यूवबैल्स की लाइट बंद कर दी गई है। किसानों को पीड़ित किया जा रहा है। प्रभावित किसानों में ज्यादातर केवट मल्लाह, रावत, पिछड़ी जातियों के ही परिवार हैं। इन परिवारों ने स्थानीय तहसील कार्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक कई बार धरना ,प्रदर्शन, सत्याग्रह कर अपनी मांगों को उठाया है। किसानों की मांग है कि वन विभाग को जमीन अन्यंत्र आवंटित की जाए और बीहड़ की जमीन पर काबिल किसानों को पट्टे दिए जाएं । विगत दिनों मुरैना कलेक्टर द्वारा समस्या की गंभीरता को देखते हुए किसानों को यह आश्वस्त किया है कि जांच करवा कर उक्त भूमि को छोड़कर अन्यत्र भूमि आवंटित की जाएगी । परंतु प्रशासनिक एवं राजनैतिक अवरोधों के चलते अभी तक यह कार्यवाही मूर्त रूप नहीं ले पाई है। एक तरफ किसान कोविड की महामारी से जूझ रहे हैं। दूसरी ओर उन्हें जमीन से उजाड़ कर भूखों मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा । क्योंकि चंबल के बीहड़ों में अन्य कोई रोजगार का जरिया नहीं है न हीं कोई उद्योग है और न ही कोई अन्य कारोबार है । यह किसान परिवारों के जीवन को बचाने का संघर्ष है। किसानों ने भी संकल्प लिया है कि वह बीहड़ की जमीन को लूटने की हर साजिश व षडयंत्र को बेनकाब करेंगे और हर हाल में जमीन को बचाएंगे। अभी यह परीक्षण है। अगर इसमें सरकार व कंम्पनियां सफल होती हैं तो आगे आने वाला समय चंबल के बीहड़ की जमीन के लिए बहुत ही घातक साबित होने वाला है।
*बीहड़ की जमीन को लूटने की साजिशें पूर्व में भी हुई असफल*
===============चंबल नदी मध्य भारत में यमुना नदी की सहायक नदी है। यह 'जानापाव पर्वत" के बाचू पॉइंट मऊ से निकलती है। इस की सहायक नदियां शिप्रा, सिंध, कालीसिंध , पार्वती और कूनो हैं। इसकी लंबाई 1024 किलोमीटर है। यह राजस्थान में चित्तौड़गढ़, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर और धौलपुर जिलों से होकर बहती है। मध्यप्रदेश में धार ,उज्जैन ,रतलाम, मंदसौर ,श्योपुर कलां, भिंड, मुरैना से होकर बहती है। यह चंबल नदी कावेरी, यमुना, सिंध ,पहुंज नदियों के साथ में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बरेह में, मध्य प्रदेश के भिंड जिले की सीमा पर शामिल पांच नदियों के संगम में" पचनदा" में शामिल होकर समाप्त हो जाती है। चंबल नदी का कुल अपवाह बेसिन क्षेत्र 19,500 किलोमीटर है। यह वह भूभाग है जिसमें एक ही दिशा में धरातल पर जलवाहित होता है।
चंबल घाटी का नाम आते ही एक अलग तरह की छवि नजरों के सामने से घूम जाती है। यह छवि जिसमें डकैत लुटेरों के गिरोह( गैंग )हैं। जो लूट, डकैती ,हत्या करने वाले उत्पाती तत्वों का जमावड़ा है। जो नृशंस कृत्यों को अंजाम देता है। यह अत्यंत भयावह व खतरनाक क्षेत्र है। इस तरह की छवि हिंदी सिनेमा और हिंदी मीडिया के एक हिस्से द्वारा बनाई गई है। जो पूरी तरह से सच नहीं है। यह बात सही है कि चंबल घाटी में बहुत ही दुर्दांत दस्यु व दस्यु सरगना हुए हैं। जिन्होंने सैकड़ों हत्याओं सहित हजारों जघन्य अपराधों को अंजाम दिया है। परंतु यह तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पक्ष वह भी है, जिसमें उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि हम सिस्टम (व्यवस्था ) की प्रताड़ना के चलते हथियार उठाने को मजबूर हुए। हम डाकू नहीं, हम बागी हैं। हम व्यवस्था के विरोधी हैं। इसलिए हमें गलत छवि के रूप में नहीं देखा जाए। चंबल घाटी में सैकड़ों सदस्यों के डकैत गिरोह रहे हैं । जो किसी जमाने में आतंक का पर्याय हुआ करते थे। जिनमें मानसिंह, तहसीलदार सिंह, पान सिंह, सूबेदार सिंह, लुक्का डाकू, सुल्ताना डाकू, पन्ना, पान सिंह तोमर, डाकू पंचम सिंह, डोंगर सिंह बटरी सिंह, अमृतलाल, मोहर सिंह, माधो सिंह, मलखान सिंह, बाबा मुस्तकीन, विक्रम मल्लाह, श्रीराम लालाराम, जगजीवन परिहार ,रमेश सिकरवार, रूपा पंडित, निर्भय सिंह गुर्जर जैसे नामी-गिरामी दस्यु सरदार हुए हैं। जिनकी गिरोहों में सैकड़ों डकैत शामिल रहे हैं। चंबल घाटी में महिला दस्यु भी बड़ी संख्या में रही है। जिनमें पुतलीबाई, फूलन देवी, सीमा परिहार, कुसमा नाइन, रेनू यादव के नाम उल्लेखनीय हैं। दो बार डकैत गिरोहों द्वारा आत्मसमर्पण भी किया गया । जिनमें सैकड़ों की संख्या में दस्युयों ने आत्मसमर्पण किया। लंबे समय तक डकैत समस्या के विरोध में आंदोलन भी हुए हैं। हालांकि वर्तमान में चंबल घाटी में डकैत समस्या नगण्य है।
चंबल घाटी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की दस्तक भी रही है। जिनमें पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जन्मभूमि रुअर बरवाई है, इनके अलावा निरंजन सिंह, गेंदालाल दीक्षित, लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी, भारत वीर मुकंदी लाल सहित बड़ी संख्या में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए हैं। इस लेख में हम वर्तमान में चंबल क्षेत्र की स्थिति के बारे में और चंबल की जमीन को लूटने के लिए लपकते कॉरपोरेट गिद्धों के बारे में चर्चा करना चाहते हैं। चंबल का बीहड़ लगभग 3लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह जमीन अच्छी उपजाऊ और बेशकीमती जमीन है। इस जमीन को कंपनियां सरकार के सहयोग से हडपना चाहती हैं। इसके लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं ।लेकिन अभी तक जन संघर्षों/जन आंदोलनों के जरिए उन्हें असफल किया गया है। जिसमें सन 1995 में चंबल अभ्यारण के नाम पर श्योपुर कलां जिले के "बड़ोदिया बिंदी" गांव से लेकर भिंड जिले के अटेर तहसील के "चापक" गांव तक चंबल के किनारे से 1 किलोमीटर की जमीन घडियालों के लिए "चंबल अभ्यारण" के नाम पर अधिग्रहीत की गई । इस भूमि से लगभग 300 गांवों को विस्थापित किए जाने की कार्यवाही शुरू हुई। तत्समय किसानों ने अखिल भारतीय किसान सभा/ मध्य प्रदेश किसान सभा के नेतृत्व में जुझारू संघर्ष किए। दर्जनों पद यात्राएं आयोजित की गई। प्रदर्शन, सत्याग्रह, आंदोलन किए गए। जिसके चलते तत्कालीन सरकार द्वारा इस अभ्यारण को चंबल के रेत तक सीमित करने की घोषणा की और गांव उजड़ने से बच गए। जो आज तक भी बचे हुए हैं। लेकिन यहीं तक कार्यवाही नहीं रुकी। बाद में अमेरिकन कंपनी मैक्स बर्थ द्वारा जमीन को लेने के लिए प्रयास किए । सरकार द्वारा भूमि आवंटन का निर्णय लिया गया। उसके खिलाफ भी चंबल से फिर किसान उठे, दिल्ली संसद तक संघर्ष की गूंज पहुंची। तत्समय प्रसिद्ध, लोक ख्यात ,वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन कृषि मंत्री को पत्र लिखकर आवंटन रद्द करने का आग्रह किया। जिसके चलते मैक्स बर्थ को जमीन का आवंटन रद्द किया गया। यह किसानों की बहुत बड़ी जीत हुई ।इस बीच में रिटायर्ड सैनिकों का टास्क फोर्स बनाकर भी जमीन लेने का प्रयास हुआ जो कामयाब नहीं हो सका। सन 2008 में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने यह घोषणा की कॉरपोरेट कंपनियां जिस जमीन पर उंगली रख देंगी, वह जमीन उनको आवंटित कर दी जाएगी । इसी क्रम में 50 हजार बीघा जमीन पांच कॉरपोरेट कंपनियों को आवंटित की गई। जिसमें 10 हजार बीघा जमीन भाजपा के औद्योगिक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष रमेश गर्ग मुरैना को भी आवंटित की गई। किसानों ने फिर हुंकार भरी, संघर्ष हुए कंपनियों को जमीन पर कब्जा नहीं लेने दिया। अंततः 3-4 वर्षो के संघर्ष के बाद कंपनियों के पट्टे निरस्त कराये गए। अब फिर नए सिरे से जमीन को लूटने की कोशिशें की जा रही है। जो दो तरह से हैं। इसके बारे में आगे उल्लेख किया गया है।
*चंबल के बीहड़ की जमीन को लूटने की तैयारी*।
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चंबल के बीहड़ की लगभग 3 लाख हेक्टेयर जमीन को लूटने की कई तरह से तैयारियां की जा रही है। जिन में फिलहाल दो तरीकों से जमीन को लूटने की तैयारी है -
अ-चंबल एक्सप्रेस वे के नाम पर
ब- विश्व बैंक से ऋण लेकर समतलीकरण कर कंपनियों को आवंटन के जरिए। (अ)-चंबल एक्सप्रेस वे के नाम पर जमीन लेने की बड़ी तैयारी है।
=============== मुरैना जिले में पहले से ही 552 नंबर राष्ट्रीय राजमार्ग संचालित है। इसके अलावा चंबल नहर पर पूर्व से ही सीमेंट कंक्रीट की सडक बनी हुई है। इसके बाद भी चंबल के बीहड़ से भिंड जिले के अटेर से लेकर श्योपुर कलां होते हुए आगे तक एक्सप्रेस वे का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। चंबल एक्सप्रेस वे जिसका नाम बदलकर बाद में अटल एक्सप्रेस वे कर दिया गया है। इसकी लंबाई लगभग 406 किलोमीटर होगी। एक्सप्रेस वे भिंड, मुरैना, श्योपुर कलां होते हुए राजस्थान में खातोली, इटावा, सुल्तानपुर के रास्ते डिगोद (कोटा) एनएच 27 से जुड़ेगा। इस प्रोजेक्ट की लागत लगभग 800 करोड रुपए आंकी गई है। इसके लिए सर्वेक्षण का कार्य प्रारंभ किया गया है। बड़ी मात्रा में भूमि अधिग्रहण होना है। अधिग्रहित भूमि में 52% भूमि सरकारी भूमि तथा 48% निजी भूमि होगी। निजी भूमि में स्वत्वधारी भूमि स्वामी किसानों की संख्या बहुत ही नगण्य है। जिन किसान परिवारों की जमीन ली जाएगी। उन्हें जमीन के बदले जमीन दी जाएगी ऐसा कहा जा रहा है। यदि कोई किसान परिवार जमीन के बदले जमीन नहीं लेना चाहता है। तो उन्हें भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के अनुसार नगदी मुआवजा बाजार मूल्य से 3 गुने से 5 गुना मिलना चाहिए, इसका प्रावधान है। परंतु इस पर सरकार अमल नहीं कर रही है। किसानों के साथ छलावा किया जा रहा है। किसान इसका लगातार विरोध भी कर रहे हैं। इसी तरह जो सरकारी जमीन बताई जा रही है। उसके बड़े भूभाग पर पीढ़ियों से लगभग 50 हजार किसान परिवार काश्तकारी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं तथा आवास बनाकर रह रहे हैं न तो उन परिवारों का सर्वे किया जा रहा है। और न ही उन्हें किसी तरह का मुआवजा या जमीन के बदले जमीन देने का प्रावधान रखा गया है। जो किसान परिवार विस्थापित होंगे। उनके सामने भीषण भुखमरी का संकट निर्मित हो जाएगा। लेकिन सरकार इस मुद्दे को नजरअंदाज कर रही है। यहां तक कि यह जो एक्सप्रेसवे बनाए जा रहा है। इसका निर्माण राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण करेगा या बी ओ टी के अंतर्गत कराया जाएगा । इसके बारे में भी अभी कोई स्पष्ट आदेश जारी नहीं हुआ है। चंबल अभ्यारण जो घडियालों को संरक्षित करने के लिए बनाया गया है। उसके एरिया को छोड़कर उस से 2 किलोमीटर आगे, दूरी पर से एक्सप्रेस-वे का निर्माण होगा। यह एक्सप्रेस वे अभी 6 लेन का होगा बाद में इसे बढ़ाकर 8 लेन कर दिया जाएगा। यहां तक कि एक्सप्रेस वे के दोनों ओर एक 1 किलोमीटर से अधिक भूमि रिजर्व रखी जाएगी । जिसमें सेवा से जुड़े कई उद्योग इकाइयां लगाने के साथ-साथ , औद्योगिक पार्क स्थापित किए जाने की भी योजना है ।इसके अलावा बस पोर्ट और चालक प्रशिक्षण केंद्र खोलने के प्रस्ताव भी केंद्र सरकार द्वारा मांगे गए है। चंबल एक्सप्रेस वे पर लॉजिस्टिक पार्क स्थापित करने की भी योजना बताई जाती है। उक्त समस्त गतिविधियों को कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा अंजाम दिया जाएगा। कुल मिलाकर लाखों हेक्टेयर चंबल के बीहड़ की बेशकीमती जमीन को लूटने की योजना बनाई जा रही है। इससे पर्यावरण को भी खतरा पैदा होगा। अतः हम मांग करते हैं कि उक्त जमीन समतल करवा कर काबिज किसानों को पट्टे दिए जाए । इसके अलावा अतिरिक्त जमीन गरीब और भूमिहीन किसानों में आवंटित की जाए। कंपनियों को चंबल के बीहड की जमीन लूटने की छूट नहीं दी जाए। *(ब) विश्व बैंक से ऋण लेकर समतलीकरण कर कंपनियों को आवंटित करने के जरिए*
===============चंबल के बीहड़ की ही नहीं जहां-जहां भी बीहड़, जंगलात, उबड़ खाबड़, बिगड़ी हुई जमीन है। उस समस्त जमीन को कॉरपोरेट्स को देने, हड़पने ,एग्रो बिजनेस पर कब्जा जमाने की कोशिशें तेज हो गई हैं। कॉरपोरेट राजनेता और नौकरशाहों का गठबंधन इस कार्य को अंजाम देने में लगा हुआ है। इसके लिए पूर्व से ही भूमि हदबंदी कानूनों को बदला जा चुका है। अब कोई भी कंपनी , व्यक्ति या संस्था उद्यानिकी, मत्स्य पालन, वृक्षारोपण, आदि गतिविधियों के नाम पर कितनी भी जमीन ले सकती है। इस तरह से जमीन की लूट का रास्ता खुल गया है। अभी हाल ही में भिंड, मुरैना, श्योपुर कलां जिलों की चंबल के बीहड़ की लगभग 3 लाख हेक्टेयर भूमि को समतलीकरण कर कंपनियों को आवंटित करने की तैयारी की जा रही है। यह परियोजना चंबल एक्सप्रेस वे की पूरक परियोजना ही है। गत वर्ष केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विश्व बैंक के वरिष्ठ प्रतिनिधि और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मीटिंग कर चंबल के बीहड़ों की 3 लाख हेक्टेयर जमीन के विकास के लिए परियोजना तैयार करने के लिए सहमति विकसित की है। इस संबंध में पार्लियामेंट्री प्रोजेक्ट रिपोर्ट पेश होनी है। जिस पर राज्य सरकार की मोहर लगने के बाद कार्यवाही आगे बढ़ेगी। यह कार्यवाही जारी है। चंबल एक्सप्रेस वे को इसके साथ जोड़ते हुए नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं यह सब के पूरा होने से ही बीहड़ क्षेत्र का विकास होगा। इस कथित विकास के पीछे कॉरपोरेट्स की घुसपैठ के अलावा और कुछ नहीं है। इससे स्थानीय किसान विस्थापित और तबाह हो जाएंगे। पूर्व में भी इसी तरह की कई योजनाएं ,परियोजनाएं बनाई गई। लेकिन मूर्त रूप नहीं ले सकी। इस परियोजना को अमल कराने की तैयारीयां लगातार जारी हैं। चंबल क्षेत्र के लिहाज से यह आवश्यक है कि चंबल के बीहड़ की जमीन भूमिहीन गरीब किसानों को आवंटित हो तथा समतलीकरण के लिए किसानों को आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाए । यदि यह संभव नहीं होता है सरकार ही समतलीकरण करवाती है। तो भी बीहड़ की जमीन किसानों को ही आवंटित की जाए। यदि यह नहीं किया गया तो विश्व बैंक से ऋण लेकर जिस परियोजना के अंतर्गत जमीन समतलीकरण किया जाएगा। उसके आगे के चरण में जमीन कॉरपोरेट कंपनियों को दी जाएगी । जिससे स्थानीय किसान उस पर बंधुआ मजदूर होकर रह जाएंगे। इसके चंबल घाटी में नया असंतोष का जन्म लेगा। जो चंबल क्षेत्र के लिए और चंबल घाटी के लिए ठीक नहीं है। सरकार के मंसूबों को जनता के बीच उजागर करना होगा और बीहड की जमीन की लूट को बचाने के लिए आगे आना होगा। हाल ही में सबलगढ़ के 10 गांव की जमीन को लेने के नाम पर "लिटमस टेस्ट" किया जा रहा है। यदि जनता सड़कों पर नहीं उतरी और जमीन नहीं बची तो फिर आगे जमीन की लूट की कोशिशों को ओर तेज किया जाएगा। इसलिए यह जमीन को बचाने का संघर्ष अत्यंत जरूरी है। आज जब भीषण कोरोना महामारी का दौर चल रहा है। ठीक से लाशें भी नहीं उठाई जा रही है। तब भी सरकार आपदा में अवसर ढूंढ रही है और चम्बल के बीहड़ की जमीन को लूटने की साज़िशें और षडयंत्र लगातार रच रही हैं। आइए इसे उजागर करें और इसकी मुखालफत करें ।