दस्यु सुंदरी कौमेश
चंबल के बीहड़ में एक नई महिला डकैत। इसके खौफ से परेशान है मध्यप्रदेश और राजस्थान की पुलिस। ऐसी दिलेर की भरे कसबे में दिन दहाड़े गोलियों की बौछार कर दी। कौन है यह। कहां रहती है। जानिए......
कई दशक पूर्व चंबल के बीहड़ में दस्यु सुंदरी फूलन देवी के खौफ ने आम आदमी के साथ पुलिस को परेशान कर रखा था। अब चंबल के बीहड़ में एक और दस्यु सुंदरी ने बंदूक उठाई है। बीहड़ में फूलन की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली इस दस्यु सुंदरी का नाम है कौमेश। जनपद पुलिस के रिकार्ड के मुताबिक जनपद के बसई डांग थाना क्षेत्र के गांव गोठियापुर निवासी छीतरिया की पुत्री कौमेश गुर्जर इन दिनों जगन गुर्जर गिरोह की सक्रिय सदस्य है। जनपद के बाडी कसबे में अंधाधुंध फायरिंग करने वाली कौमेश ने अपनी दिलेरी का परिचय दिया था। कौमेश के सिर पर मध्यप्रदेश पुलिस की ओर से चार हजार का ईनाम है। धौलपुर पुलिस ने उस पर पांच सौ रूपये का ईनाम घोषित किया है। अपराध बढ़ते देख पुलिस इनाम राशिर और बढ़ाने की तैयारी में है।
सोमवार, 28 अप्रैल 2008
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008
मोहर सिंह का अंत
एक और बेहमई को अंजाम देने की धमकी देने वाले मोहर सिंह मल्लाह का पुलिस ने अंत कर दिया। मोहर सिंह उन डकैतों की कड़ी में था जो राजनीतिक कारणों से बीहड़ों में कूदे। यमुना का बीहड़ मल्लाह डकैतों के लिए चर्चित रहा है। मोहर सिंह का बीहड़ी जीवन कुल जमा एक साल रहा। यूं वह मान सिंह मल्लाह और अरविंद गुजर्र गैंग में भी काम करता रहा। हाल ही में बीडीसी चुनाव हारने के बाद वह बीहड़ में कूद गया। इसके बाद उसने एक और बेहमई जैसे कांड को करने की धमकी दी थी।
गुरुवार, 10 अप्रैल 2008
तो शुरू करें
चंबल के बीहड़ों का अपराध जगत में अपना एक इतिहास है। चंबल और उसकी सहायक नदियों से बने लगभग 6 लाख एकड़ भूमि पर पसरे खौफनाक बीहड़ अपराधियों की शरणस्थली रहे हैं। इलाके में प्रचलित बागी,दस्यू या डकैत और लूटेरे जैसे शब्द एक प्रतीक हैं-अपराध की दुनिया के आए ह्रास का। ये शब्द ही नहीं अपराधी मानसिकता का जीता जागता दस्तावेज हैं।
क्षेत्र में प्रचलित सबसे पुराना अपराधी संबोधन बागी अंग्रेजी शासनकाल में प्रचलित था। यह वह समय था जब अंग्रेजी शासन में जमींदारों के जुल्मोसितम से तंग होकर लोग व्यक्तिगत तौर पर बगावत कर चंबल की गोद में चले जाते थे। तब वह इनकी मांग थी। हर मुसीबत में रक्षा करने वाली। बीहड़ बागी के लिए मां का आंचल। इन लोगों ने ही पहली बार इस जमीन पर गोलियों की आवाज गुंजित की थी। ये लोग भले ही व्यक्तिगत आघातों के चलते बीहड़ में कूदे हों लेकिन दिलों में अंग्रेजी शासन और जमींदारों के खिलाफ विक्षोभ तो था ही। इस समय लोगों ने उनके इस काम को नाम दिया बगावत। प्रचलित दमन की व्यवस्था से हटकर खड़े होने का कदम और इस तरह बन गए वह बागी। इस वर्ग में बागी सन्यासी,बह्मचारी, पंडित गेंदा लाल दीक्षित।
इन बागियों से क्षेत्र की जनता को कभी कोई बड़ी असुविधा नहीं हुई। यह ग्रामीणों से संपर्क भी कम रखते थे। डकैती डालते थे तो केवल सरकारी खजाने या जमींदार को ही लूटते थे। मगर जनता से संबंध नहीं। इनमें से कई डकैत तो सीधे-सीधे आजादी के लिए लड़े भी, हालांकि आजादी का कुल जमा उनका कंसेप्ट अंग्रेजों को देश से निकाल भर देना था। गांव वालों के संपर्क में न रहने से इनमें के कइयों को ग्रामीणों से ही मुठभेड़ हुई फिर या तो वह पकड़े गए या मार डाले गए। ब्रह्मचारी और गेंदालाल दीक्षित के दल की भी ग्रामीणों से भिडंत हुई थी। इसमें से उनमें 35 साथी मारे गए थे। इस मुठभेड़ में गेंदालाल और ब्रह्मचारी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। यह लोग इस समय ग्वालियर में एक जगह डकैती डालने जा रहे थे। तो इस तरह बागी बने। अब इस बारे में और जानकारी के लिए बागी लिंक पर मिलेंगी जानकारी। इंतजार कीजिए........नमस्कार।
क्षेत्र में प्रचलित सबसे पुराना अपराधी संबोधन बागी अंग्रेजी शासनकाल में प्रचलित था। यह वह समय था जब अंग्रेजी शासन में जमींदारों के जुल्मोसितम से तंग होकर लोग व्यक्तिगत तौर पर बगावत कर चंबल की गोद में चले जाते थे। तब वह इनकी मांग थी। हर मुसीबत में रक्षा करने वाली। बीहड़ बागी के लिए मां का आंचल। इन लोगों ने ही पहली बार इस जमीन पर गोलियों की आवाज गुंजित की थी। ये लोग भले ही व्यक्तिगत आघातों के चलते बीहड़ में कूदे हों लेकिन दिलों में अंग्रेजी शासन और जमींदारों के खिलाफ विक्षोभ तो था ही। इस समय लोगों ने उनके इस काम को नाम दिया बगावत। प्रचलित दमन की व्यवस्था से हटकर खड़े होने का कदम और इस तरह बन गए वह बागी। इस वर्ग में बागी सन्यासी,बह्मचारी, पंडित गेंदा लाल दीक्षित।
इन बागियों से क्षेत्र की जनता को कभी कोई बड़ी असुविधा नहीं हुई। यह ग्रामीणों से संपर्क भी कम रखते थे। डकैती डालते थे तो केवल सरकारी खजाने या जमींदार को ही लूटते थे। मगर जनता से संबंध नहीं। इनमें से कई डकैत तो सीधे-सीधे आजादी के लिए लड़े भी, हालांकि आजादी का कुल जमा उनका कंसेप्ट अंग्रेजों को देश से निकाल भर देना था। गांव वालों के संपर्क में न रहने से इनमें के कइयों को ग्रामीणों से ही मुठभेड़ हुई फिर या तो वह पकड़े गए या मार डाले गए। ब्रह्मचारी और गेंदालाल दीक्षित के दल की भी ग्रामीणों से भिडंत हुई थी। इसमें से उनमें 35 साथी मारे गए थे। इस मुठभेड़ में गेंदालाल और ब्रह्मचारी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। यह लोग इस समय ग्वालियर में एक जगह डकैती डालने जा रहे थे। तो इस तरह बागी बने। अब इस बारे में और जानकारी के लिए बागी लिंक पर मिलेंगी जानकारी। इंतजार कीजिए........नमस्कार।
बीहड़
बीहड़ चंबल और उसकी सहायक नदियों के कटान से बनी ऐसी भूमि जो अपने आश्रितों को हमेशा ही पनाह देता रहा है। उसमें रहने वालों के लिए यह सुखद अनूभूति है तो सभ्य कहे जाने वाले समाज के लिए एक सिहरन पैदा करने का कारक। कारण लगभग 6 लाख एकड़ भूमि पर फैले इस उवर्र मगर बंजर कंदराओं में ऐसी तमाम खोह और ठिकाने हैं जहां से सालों से बागी, दस्यु या फिर इन्हें डकैत कहें अपनी खौफ की दुनिया चलाते रहे हैं। कभी इस दुनिया का चेहरा ऐसा नहीं हुआ करता था। तब अपराध ने संगठित अपराध का ऐसा रूप नहीं लिया था। या कहे तब अपराध एक उद्योग की तरह विकसित नहीं था। फिर क्या था बीहड़ का चेहरा। कैसी रही उसकी दुनिया। बीहड़ क्यों बन गया इतना खौफनाक। जानना चाहते हैं तो रहे मेरे साथ।......लगातार। मैं आपको बताउंगा कि बागी,दस्यु और डकैत कहने और भावार्थ में एक शब्द होते हुए भी असल में कितने अलग हैं। अपने स्वभाव में, अपराध करने के अपने तरीके में, एक बागी एक दस्यू या फिर एक डकैत से कैसे भिन्न है। यह एक शब्द नहीं पूरा कालखंड है।
शनिवार, 5 अप्रैल 2008
बीहड़ ब्लाग में आप सभी का स्वागत है।
बीहड़ ब्लाग में आप सभी का स्वागत है। यहां पर हम बताएंगे बीहड़ के उन किस्सों कारनामों को जो अब तक कहीं पर न तो पढ़ा गया होगा और न सुना गया होगा। क्या है बीहड़ की शब्दावली, कौन हैं पर्दे के पीछे छिपे वो लोग जिनके चलते लोग बीहड़ में जाने और जीने को मजबूर होते हैं।
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