सोमवार, 12 मार्च 2012
लापरवाही को कैसे कह दें शहीदी
एक बार फिर गलत कारणों से चंबल चर्चा में है। मुरैना जिले के बानमोर में ट्रैक्टर से कुचलकर हुए आईपीएस नरेंद्र की हत्या ने देश भर में कोहराम मचा दिया है। देश की आईपीएस लॉबी सख्त गुस्से में है। इससे मध्यप्रदेश सरकार की भी किरकिरी हुई है। हमार भी नरेंद्र और उनके परिवार से गहरी संवेदना है। साथ ही इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा भी करते हैं। यह भी कि जिले में पत्थर खनन का काम अवैध तरीके से तेजी में है। इस काम में असामाजिक तत्वों की सहभागिता भी है। मगर यहां जरा घटना पर ठहरकर कुछ सोचने की जरूरत है।
ठीक होली के दिन एक आईपीएस अफसर (जो अभी एसपी नहीं था) ड्यूटी पर अपना काम कर रहा था। जाहिर है कि उसके पास पुलिस का अमला और खुद की सर्विस रिवाल्वर भी थी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इस अफसर ने पत्थर भरकर लाते ट्रैक्टर को हाथ दिया और जाहिर है कि चालक नहीं रूका। इस पर इस अफसर ने दौड़कर ट्रैक्टर का पीछा किया और उस पर चढ़ गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक धक्कामुक्की हुई और यह अफसर गिरकर ट्रैक्टर के नीचे आ गया। इससे उसकी मौत हो गई।
निसंदेह यह आपत्तिजनकर घटना है। इसकी अगर निंदा न की जाए तो असामाजिक तत्वों के हौंसले बुलंद होंगे लेकिन जरा आईपीएस स्तर के इस अफसर की कार्यशैली पर भी गौर करें। अगर आग में जानबूझकर कूदना दिलेरी है तो फ्रिर हर रोज आग से जलकर होने वाली आत्महत्या को क्या कहेंगे। अधिकार और ताकत होते हुए उसका उपयोग न कर तोप के सामने खड़े हो जाने को बहादुरी कैसे कह दिया जाए। अफसर के साथ अमला था। जिप्सी कार थी। वह खुद दौड़ने के बजाए अमले को पीछे लगा सकता था। अगर यह भी नहीं तो सर्विस रिवाल्वर से ट्रैक्टर के टायर को निशाना बना सकता है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
इससे भी बड़ी बात यह कि अफसर के परिवारीजनों की ओर से एक विधायक के तार घटना से जुड़े होने के आरोप लगाए गए। कहा गया कि यह विधायक अफसर की आईएएस पत्नी पर किसी काम को लेकर दबाव बना रहा था। मगर यह कतई नहीं बताया गया कि उस विधायक का खनन से क्या संबंध है। या फिर इस घटना से उसका क्या ताल्लुक है। यही नहीं घटना के बाद इस इलाके में ‘खनन माफिया’ यह शब्द कई बार उछाला गया लेकिन एक भी रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया कि कौन माफिया है। कितने माफिया हैं और वह कहां-कहां सक्रिय हैं। यही नहीं जिस ट्रैक्टर से दुर्घटना हुई वह किस ‘माफिया’ से ताल्लुक रखता है।
यह सच है कि इस इलाके में अवैध पत्थर खनन होता है। यहां सीमेंट पत्थर की पहाड़िया हैं। साथ ही इमारत बनाने के काम आने वाला और कीमती पत्थर भी है। मगर इस अवैध खनन में जो असामाजिक तत्व लगे हैं उन्हें माफिया तो कतई नहीं कहा जा सकता। यह ऐसे असामाजिक लोग हैं जो अपनी राजनीतिक संबंधों का इस्तेमाल कर यह काम करते हैं। मगर इनकी गतिविधियां गिरोहबंद तो कतई नहीं हैं। ऐसे में घटना की गहराई में न जाकर जिस तरह के आरोप और प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं वह घटना को एक समस्या न बना राजनीतिक मसला बना दे रहे हैं। यही एक चिंता का सबब है।
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