सोमवार, 26 मार्च 2012
पान सिंह तोमर
पान सिंह तोमर इन दिनों चर्चा में है। उन पर बनी फिल्म ने काफी दर्शक जोड़े। पान सिंह तोमर का जीवन था ही कुछ ऐसा। उनका असली चित्र
बुधवार, 21 मार्च 2012
डकैत रमेश सिकरवार फिर बीहड़ में
80 के दशक के चंबल के बीहड़ को हिला देने वाला और आजीवन कारावास भुगतने के साथ सामान्य जिंदगी बिता रहा दस्यु रमेश सिकरवार एक बार फिर बीहड़ में कूद गया है। जीवन के छटवें दशक में चल रहे इस डकैत के जीवन में कुछ ऐसा घटा कि एक बार फिर इसने बंदूक उठा ली है।
दरअसल रमेश सिकरवार समर्पण के बाद 18 साल मुरैना जिले की सबलगढ़ जेल में बंद रहा। यहां से रिहा होने के बाद इसी जिले के विजयपुर कसबे के पास मिली कुछ जमीन पर वह खेती करके रहने लगा। इस इलाके में रावत जाति का बाहुल्य है और कांग्रेस और भाजपा दोनों की दलों के नेता और विधायक इसी जाति से हैं। बताते हैं कि इस कसबे के पास कैमाराकलां नाम के गांव में जमीन के कुछ हिस्से को लेकर सिकरवार के परिवार को रावत जाति के लोगों में विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि इस घटना में रावत जाति के दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले में छह-सात लोगों को नामजद किया गया है जिनमें रमेश सिकरवार का भी नाम शामिल है। इसके बाद से ही रमेश सिकरवार अपने साथियों के साथ फरार है। अब पुलिस रिकार्ड में तो रमेश दो लोगों की हत्या का आरोपी हो ही गया है लेकिन कहते हैं इस घटना के दौरान वह स्वयं मौजूद नहीं था। उसके परिवारीजन अवश्य यहां थे। रावत जाति के विधायक और भाजपा-कांग्रेस नेताओं के दबाव में पुलिस ने रमेश को भी आरोपी बना लिया है। सच्चाई कुछ भी हो लेकिन एक बार फिर रमेश की दुनिया बीहड़ हो गई है।
दरअसल रमेश सिकरवार समर्पण के बाद 18 साल मुरैना जिले की सबलगढ़ जेल में बंद रहा। यहां से रिहा होने के बाद इसी जिले के विजयपुर कसबे के पास मिली कुछ जमीन पर वह खेती करके रहने लगा। इस इलाके में रावत जाति का बाहुल्य है और कांग्रेस और भाजपा दोनों की दलों के नेता और विधायक इसी जाति से हैं। बताते हैं कि इस कसबे के पास कैमाराकलां नाम के गांव में जमीन के कुछ हिस्से को लेकर सिकरवार के परिवार को रावत जाति के लोगों में विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि इस घटना में रावत जाति के दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले में छह-सात लोगों को नामजद किया गया है जिनमें रमेश सिकरवार का भी नाम शामिल है। इसके बाद से ही रमेश सिकरवार अपने साथियों के साथ फरार है। अब पुलिस रिकार्ड में तो रमेश दो लोगों की हत्या का आरोपी हो ही गया है लेकिन कहते हैं इस घटना के दौरान वह स्वयं मौजूद नहीं था। उसके परिवारीजन अवश्य यहां थे। रावत जाति के विधायक और भाजपा-कांग्रेस नेताओं के दबाव में पुलिस ने रमेश को भी आरोपी बना लिया है। सच्चाई कुछ भी हो लेकिन एक बार फिर रमेश की दुनिया बीहड़ हो गई है।
सोमवार, 12 मार्च 2012
लापरवाही को कैसे कह दें शहीदी
एक बार फिर गलत कारणों से चंबल चर्चा में है। मुरैना जिले के बानमोर में ट्रैक्टर से कुचलकर हुए आईपीएस नरेंद्र की हत्या ने देश भर में कोहराम मचा दिया है। देश की आईपीएस लॉबी सख्त गुस्से में है। इससे मध्यप्रदेश सरकार की भी किरकिरी हुई है। हमार भी नरेंद्र और उनके परिवार से गहरी संवेदना है। साथ ही इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा भी करते हैं। यह भी कि जिले में पत्थर खनन का काम अवैध तरीके से तेजी में है। इस काम में असामाजिक तत्वों की सहभागिता भी है। मगर यहां जरा घटना पर ठहरकर कुछ सोचने की जरूरत है।
ठीक होली के दिन एक आईपीएस अफसर (जो अभी एसपी नहीं था) ड्यूटी पर अपना काम कर रहा था। जाहिर है कि उसके पास पुलिस का अमला और खुद की सर्विस रिवाल्वर भी थी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इस अफसर ने पत्थर भरकर लाते ट्रैक्टर को हाथ दिया और जाहिर है कि चालक नहीं रूका। इस पर इस अफसर ने दौड़कर ट्रैक्टर का पीछा किया और उस पर चढ़ गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक धक्कामुक्की हुई और यह अफसर गिरकर ट्रैक्टर के नीचे आ गया। इससे उसकी मौत हो गई।
निसंदेह यह आपत्तिजनकर घटना है। इसकी अगर निंदा न की जाए तो असामाजिक तत्वों के हौंसले बुलंद होंगे लेकिन जरा आईपीएस स्तर के इस अफसर की कार्यशैली पर भी गौर करें। अगर आग में जानबूझकर कूदना दिलेरी है तो फ्रिर हर रोज आग से जलकर होने वाली आत्महत्या को क्या कहेंगे। अधिकार और ताकत होते हुए उसका उपयोग न कर तोप के सामने खड़े हो जाने को बहादुरी कैसे कह दिया जाए। अफसर के साथ अमला था। जिप्सी कार थी। वह खुद दौड़ने के बजाए अमले को पीछे लगा सकता था। अगर यह भी नहीं तो सर्विस रिवाल्वर से ट्रैक्टर के टायर को निशाना बना सकता है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
इससे भी बड़ी बात यह कि अफसर के परिवारीजनों की ओर से एक विधायक के तार घटना से जुड़े होने के आरोप लगाए गए। कहा गया कि यह विधायक अफसर की आईएएस पत्नी पर किसी काम को लेकर दबाव बना रहा था। मगर यह कतई नहीं बताया गया कि उस विधायक का खनन से क्या संबंध है। या फिर इस घटना से उसका क्या ताल्लुक है। यही नहीं घटना के बाद इस इलाके में ‘खनन माफिया’ यह शब्द कई बार उछाला गया लेकिन एक भी रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया कि कौन माफिया है। कितने माफिया हैं और वह कहां-कहां सक्रिय हैं। यही नहीं जिस ट्रैक्टर से दुर्घटना हुई वह किस ‘माफिया’ से ताल्लुक रखता है।
यह सच है कि इस इलाके में अवैध पत्थर खनन होता है। यहां सीमेंट पत्थर की पहाड़िया हैं। साथ ही इमारत बनाने के काम आने वाला और कीमती पत्थर भी है। मगर इस अवैध खनन में जो असामाजिक तत्व लगे हैं उन्हें माफिया तो कतई नहीं कहा जा सकता। यह ऐसे असामाजिक लोग हैं जो अपनी राजनीतिक संबंधों का इस्तेमाल कर यह काम करते हैं। मगर इनकी गतिविधियां गिरोहबंद तो कतई नहीं हैं। ऐसे में घटना की गहराई में न जाकर जिस तरह के आरोप और प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं वह घटना को एक समस्या न बना राजनीतिक मसला बना दे रहे हैं। यही एक चिंता का सबब है।
सोमवार, 5 मार्च 2012
अस्सी हजार का इनामी राजेंद्र गुर्जर मारा गया
राजस्थान के धौलपुर जिला में बाड़ी क्षेत्र के थाना डांग बसई के बीहड़ में हुई मुठभेड़ में राजस्थान पुलिस ने 84 हजार का इनामी डकैत राजेन्द्र गुर्जर और उसका साथी रामअख्तर मार गिराने में कामयाबी हासिल की है। अंधेरे का लाभ उठाकर अन्य बदमाश भाग निकले। मुठभेड़ में गोली लगने से एक दरोगा भी घायल हुआ है। राजेंद्र सिंह पर उत्तरप्रदेश में 50, मध्यप्रदेश में 30 और राजस्थान में चार हजार का इनाम घोषित था। वह उत्तरप्रदेश में अधिक सक्रिय था और आगरा में उसके कई कैरियर काम करते थे।
थाना डांग बसई क्षेत्र के गांव नगर कोटरा के रविवार की रात राजेन्द्र डकैत गिरोह के ठहरे होने की पुलिस को जानकारी मिली। एसपी राहुल प्रकाश ने इस सूचना पर जंगल की घेराबंदी रात्रि को ही करा ली। पुलिस टीम की भनक लगते ही डकैतों ने फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस फायरिंग में दोनों डकैत मौके पर ही ढेर हो गये। इस मुठभेड़ में हाथ में गोली लगने से एएसआई रामवीर भी घायल हो गये। उनको स्वास्थ्य केन्द्र धौलपुर में भर्ती कराया गया है।
कुख्यात अपराधी राजेन्द्र पर धौलुपर जिले के कई थानों में पुलिस से मुठभेड़, हत्या के प्रयास, अपहरण जैसे एक दर्जन संगीन मामले दर्ज हैं। राजस्थान के अलावा यूपी, एमपी में हत्या के प्रयास, अपहरण जैसे तीन दर्जन से भी अधिक मामले दर्ज हैं। पिछले एक दशक से राजेन्द्र का यूपी, एमपी से अपहरण कर लाना और डांग बसई थाना क्षेत्र के जंगलो में रहकर बड़ी रकम लेकर फिरौती करना एकमात्र व्यवसाय बन चुका था। यूपी, एमपी पुलिस की ओर से इस पर आठ हजार रुपये का इनाम घोषित था। तीनों प्रदेशों की पुलिस को लम्बे समय से इसकी तलाश थी, लेकिन पुलिस को चकमा देकर भागने में इसे महारथ हासिल था। मुठभेड़ में मारे गये दोनों दस्युओं के शवों का बाड़ी सामुदायिक स्वाथ्य केन्द्र पर चिकित्सक ने सोमवार को पोस्टमार्टम किया और शवों को उनके परिजनों के सुपुर्द कर दिया है। पुलिस ने बताया कि मारे गये डकैतों के कब्जे से थी्र नोट थ्री की एक व 36 बोर के दो पचफेरा सहित भारी मात्रा में जिंदा कारतूस बरामद मिले हैं। गिरोह के अन्य सदस्य रात्रि में अंधेरा का फायदा उठाकर भागने में सफल रहे।
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