12 सितंबर को फिर बेहमई कांड की कानपुर देहात के एडीजे कोर्ट में सुनवाई है। 80 के दशक में देश को हिला देने वाले बेहमई हत्याकांड को 30 साल गुजर जाने के बाद भी इस मामले में आज तक गवाही नहीं हो सकी है। इत दौरान मामले के सभी मुख्य आरोपियों की मौत हो चुकी है। मामले में चार आरोरियों के खिलाफ नामजद और 36 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। इनमें से अब केवल सात ही जिंदा हैं।
चंबल और यमुना के बीहड़ों में 80 के दशक में डकैत गैंगों की आपसी दुशमनी को यहां के निरीह ग्रामीणों को भोगना पड़ा। फूलन देवी के गैंग ने बेहमई में 14 फरवरी 1981 को शाम ढले हमलाकर ठाकुर जाति के 21 ग्रामीणों को मार दिया था। फूलन की निगाह में बेहमई गांव उसके विरोधी डाकू लालाराम श्रीराम गिरोह की शरणस्थली था और इसी गांव के एक स्थान पर डाकू लालाराम ने फूलन देवी की इज्जत लूटी थी। इस घटना की प्रतिक्रिया में गुस्साए श्रीराम-लालाराम के गैंग ने 26 मई 1984 को औरैया जिले के मई-अस्ता गांव में 13 मल्लाह जाति के लोगों को मार दिया था।
बेहमई मामले की रिपोर्ट कानपुर देहात में दर्ज की गई। इस मामले में फूलनदेवी, रामअवतार, मुस्तकीम और लल्लू को नामजद कराते हुए 36 अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया। तब से लेकर अब तक इस मामले में पीड़ित न्याय की बाट देख रहे हैं। जवानी में जो विधवा हुईं वह बुढ़ा गई हैं। जो बच्चे थे वह जवान हो गए हैं लेकिन अभी तक इस मामले में गवाही तक नहीं की जा सकी है। इस मामले की सुनवाई कानपुर देहात के एडीजे कोर्ट सात में चल रही है। आरोपी पक्ष के वकील गिरीश नारायण द्विवेदी बताते हैं कि इन 30 सालों में इस मामले में 460 से अधिक तारीखें लग चुकी हैं। बीते दो-ढाई साल से तो हर तारीख में आरोपियों को हाजिर करने के लिए पुलिस को नोटिस जारी किए जा रहे हैं लेकिन आरोपियों को उपस्थित नहीं किया जा सका है। उन्होंने बताया कि इस मामले में सभी चारों मुख्य आरोपियों की मौत हो चुकी है। कुल 40 लोगों में अभी सात लोग ही जिंदा बचे हैं। इनमें एक आरोपी रामसिंह जेल में है। तीन आरोपी भीखा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी उर्फ कृष्णस्वरूप और फोसे उर्फ फोसा जमानत पर हैं। तीन आरोपी श्यामू और दो अन्य ऐसे हैं जिन्हें अदालत में हाजिर करने के लिए न्यायालय से बार-बार नोटिस दिए जा रहे हैं लेकिन पुलिस उन्हें हाजिर नहीं कर सकी है।
इस मामले में पीड़ितों के पैरोकार राजाराम का कहना है कि वह वर्षों से मामले में न्याय की उम्मीद लगाए हुए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। इसके लिए वह सब कुछ भूलकर केस लड़ रहे हैं। मगर पिछले महीने तक तो इस मामले में आरोप तक तय नहीं किए जा सके। अदालत ने 24 अगस्त 2012 को मामले में आरोप तय किया। अब आज बुधवार 12 सितंबर को मामले में गवाही होनी है लेकिन नहीं लगता कि इस दिन गवाही हो पाएगी। वकील गिरीश नारायण का कहना है कि कानपुर कोर्ट में स्ट्राइक हो सकती है।
‘‘इस मामले में देरी का कारण यह रहा कि कभी भी आरोपियों को एक साथ न्यायालय में हाजिर नहीं किया जा सका।’’
गिरीश नारायण द्विवेदी, मामले में वकील
चंबल और यमुना के बीहड़ों में 80 के दशक में डकैत गैंगों की आपसी दुशमनी को यहां के निरीह ग्रामीणों को भोगना पड़ा। फूलन देवी के गैंग ने बेहमई में 14 फरवरी 1981 को शाम ढले हमलाकर ठाकुर जाति के 21 ग्रामीणों को मार दिया था। फूलन की निगाह में बेहमई गांव उसके विरोधी डाकू लालाराम श्रीराम गिरोह की शरणस्थली था और इसी गांव के एक स्थान पर डाकू लालाराम ने फूलन देवी की इज्जत लूटी थी। इस घटना की प्रतिक्रिया में गुस्साए श्रीराम-लालाराम के गैंग ने 26 मई 1984 को औरैया जिले के मई-अस्ता गांव में 13 मल्लाह जाति के लोगों को मार दिया था।
बेहमई मामले की रिपोर्ट कानपुर देहात में दर्ज की गई। इस मामले में फूलनदेवी, रामअवतार, मुस्तकीम और लल्लू को नामजद कराते हुए 36 अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया। तब से लेकर अब तक इस मामले में पीड़ित न्याय की बाट देख रहे हैं। जवानी में जो विधवा हुईं वह बुढ़ा गई हैं। जो बच्चे थे वह जवान हो गए हैं लेकिन अभी तक इस मामले में गवाही तक नहीं की जा सकी है। इस मामले की सुनवाई कानपुर देहात के एडीजे कोर्ट सात में चल रही है। आरोपी पक्ष के वकील गिरीश नारायण द्विवेदी बताते हैं कि इन 30 सालों में इस मामले में 460 से अधिक तारीखें लग चुकी हैं। बीते दो-ढाई साल से तो हर तारीख में आरोपियों को हाजिर करने के लिए पुलिस को नोटिस जारी किए जा रहे हैं लेकिन आरोपियों को उपस्थित नहीं किया जा सका है। उन्होंने बताया कि इस मामले में सभी चारों मुख्य आरोपियों की मौत हो चुकी है। कुल 40 लोगों में अभी सात लोग ही जिंदा बचे हैं। इनमें एक आरोपी रामसिंह जेल में है। तीन आरोपी भीखा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी उर्फ कृष्णस्वरूप और फोसे उर्फ फोसा जमानत पर हैं। तीन आरोपी श्यामू और दो अन्य ऐसे हैं जिन्हें अदालत में हाजिर करने के लिए न्यायालय से बार-बार नोटिस दिए जा रहे हैं लेकिन पुलिस उन्हें हाजिर नहीं कर सकी है।
इस मामले में पीड़ितों के पैरोकार राजाराम का कहना है कि वह वर्षों से मामले में न्याय की उम्मीद लगाए हुए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। इसके लिए वह सब कुछ भूलकर केस लड़ रहे हैं। मगर पिछले महीने तक तो इस मामले में आरोप तक तय नहीं किए जा सके। अदालत ने 24 अगस्त 2012 को मामले में आरोप तय किया। अब आज बुधवार 12 सितंबर को मामले में गवाही होनी है लेकिन नहीं लगता कि इस दिन गवाही हो पाएगी। वकील गिरीश नारायण का कहना है कि कानपुर कोर्ट में स्ट्राइक हो सकती है।
‘‘इस मामले में देरी का कारण यह रहा कि कभी भी आरोपियों को एक साथ न्यायालय में हाजिर नहीं किया जा सका।’’
गिरीश नारायण द्विवेदी, मामले में वकील