बुधवार, 21 दिसंबर 2011
लीजिए अब यमुना पर कब्जे की तैयारी
एक विदेशी कंपनी को अब यमुना को बचाने की चिंता सताई है। ब्रिटेन की यह कंपनी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ मिलकर यमुना को बचाने और उसे इंग्लैंड की थीमस नदी की तरह पवित्र बनाने के काम में जुट गई है। इटावा के पास डिभौली घाट पर थेम्स खिर रेस्टोरेशन ट्रस्ट के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी ने नारियल फोड़कर आज इसकी शुरूआत की।
सवाल उठता है कि देश की सरकारें, तमाम संगठन क्या बिल्कुल ही नालायक हैं जो कि एक विदेशी कंपनी को यह काम सौंपा गया है। ट्रस्ट के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी रॉबर्ट और पीटर स्विलित ने बताया कि
थेम्स खिर रेस्टोरेशन ट्रस्ट इग्लैंड डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया तथा पीस इंसट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में यमुना नदी के जल को पवित्र बनाने और उसके जेल में लुप्त हो रहे जलचरों को बचाने के उद्देश्य से संयुक्त अभियान चलाया गया। इसके तहत प्रथम चरण में भरेह से लेकर बटेश्वर तक सर्वे कराया जायेगा और जमुना के जल में जीवन यापन कर रहे जलचरों की गतिविधियों के ज्ञान के साथ-साथ उनकी घटती जनसंख्या के कारणों को खोजा जायेगा।
गौरतलब है कि बीते कुछ सालों से चंबल प्रोजेक्ट के कारण यमुना में भी कछुआ और डाल्फिन की संख्या बढ़ रही है। सवाल है कि जब चंबल प्रोजेक्ट के सफल कार्यान्वयन का उदाहरण सामने है तो फिर उसे आगे बढ़ाने की बजाए यह नया प्रयोग क्यों किया जा रहा है। कहीं नदियों के जल को गुपचुप तरीके से बेचने की योजना का यह कोई गुप्त एजेंड़ा तो नहीं। पहले यह कंपनियां हमें लुभावने सपने दिखाएंगी। हमारी परेशानी को दूर करने के दावे करेंगी और फिर धीरे से हमारे संसाधनों पर कब्जा कर लेंगी। अगर ऐसा नहीं है तो जिस यमुना को बचाने के लिए जल संचयन पुरुष राजेंद्र सिंह ने पंचनद पर जो अभियान शुरू किया उस पर सरकार ने ध्यान क्यों नहीं दिया।
शनिवार, 3 दिसंबर 2011
गट्टा का चबूतरा बनवाओ नहीं तो मचा देंगे तबाही
डकैत पप्पू गुर्जर ने दी मोरवान के ग्रामीण को फोन पर धमकी
चंबल आईजी ने किया मोरावन व हथेड़ी गांव का दौरा
डकैतों के भय से हथेड़ी गांव खाली करने वाले लोग अभी अपने गांव बापस जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे कि डकैत पप्पू गुर्जर ने दो दिन पहले मोरावन के ग्रामीणों को फोन पर धमकी देकर दशहत और बड़ा दी है। डकैत पप्पू गुर्जर ने धमकी दी है कि यदि मोरवान में गट्टा का चबूतरा नहीं बनवाया तो वह तबाही मचा देंगे। धमकी की खबर के बाद चंबल आईजी व एसपी ने गांव का दौरा कर ग्रामीणों से चर्चा की और उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया है।
मालूम हो, कि डकैत पप्पू गुर्जर ने १४ अक्टूबर को हथेड़ी गांव की खिरखाईयों पर मोरावन निवासी मोहर सिंह गुर्जर की नाक व हाथ काट दिए थे। इसके बाद से ही लोग दहशत में थे और गांव खाली कर पारौन पहुंच गए थे। एक दिन पहले ही कलेक्टर ज्ञानेश्वर बी पाटील और पुलिस अधीक्षक महेन्द्र सिंह सिकरवार ने यहां के लोगों से मिलकर गांव बापस लौटने की बात कही थी, लेकिन ग्रामीणों ने गांव बापस जाने से इंकार कर दिया था। डकैत पप्पू गुर्जर ने दो दिन पहले मोरवान निवासी विक्रम गुर्जर को फोन पर धमकी दी है कि ग्रामीण गांव में गिरोह के सरगना राजेन्द्र उर्फ गट्टा का चबूतरा बनवाय, अन्यथा तबाही मचा दी जाएगी। डकैत पप्पू गुर्जर ने मोरावन निवासी विक्रम गुर्जर को फोन पर यह बात भी कही कि ग्रामीण बार-बार पुलिस की शरण लेंगे तो वह गांव की पुलिस चौकी पर भी हमला कर देगा। डकैतों की इस धमकी से मोरावन और नसीहर के ग्रामीणों में इतनी दहशत है कि उन्होंने घर से निकलना बंद कर दिया है। मोरावन के ग्रामीण अब दूसरी जगह डेरा डालने के लिए जगह खोज रहे हैं। धमकी की खबर के बाद चंबल आईजी एसडब्लू नकवी ने शुक्रवार को एसपी महेन्द्र सिंह सिकरवार के साथ मोरावन और हथेड़ी गांव का दौरा किया और ग्रामीणों से चर्चा की और उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया, लेकिन ग्रामीणों की दहशत अभी भी कम नहीं हुई है। है।
एक व्यक्ति के मोबाइल पर धमकी दी गई है। गांव में सुरक्षा व्यवस्था भी बड़ा दी गई है। ग्रामीणों को समझाया जा रहा है कि वे वहीं रहें, पुलिस पूरी तरह से सतर्क हैं।
महेन्द्र सिंह सिकरवार
पुलिस अधीक्षक
चंबल आईजी ने किया मोरावन व हथेड़ी गांव का दौरा
डकैतों के भय से हथेड़ी गांव खाली करने वाले लोग अभी अपने गांव बापस जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे कि डकैत पप्पू गुर्जर ने दो दिन पहले मोरावन के ग्रामीणों को फोन पर धमकी देकर दशहत और बड़ा दी है। डकैत पप्पू गुर्जर ने धमकी दी है कि यदि मोरवान में गट्टा का चबूतरा नहीं बनवाया तो वह तबाही मचा देंगे। धमकी की खबर के बाद चंबल आईजी व एसपी ने गांव का दौरा कर ग्रामीणों से चर्चा की और उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया है।
मालूम हो, कि डकैत पप्पू गुर्जर ने १४ अक्टूबर को हथेड़ी गांव की खिरखाईयों पर मोरावन निवासी मोहर सिंह गुर्जर की नाक व हाथ काट दिए थे। इसके बाद से ही लोग दहशत में थे और गांव खाली कर पारौन पहुंच गए थे। एक दिन पहले ही कलेक्टर ज्ञानेश्वर बी पाटील और पुलिस अधीक्षक महेन्द्र सिंह सिकरवार ने यहां के लोगों से मिलकर गांव बापस लौटने की बात कही थी, लेकिन ग्रामीणों ने गांव बापस जाने से इंकार कर दिया था। डकैत पप्पू गुर्जर ने दो दिन पहले मोरवान निवासी विक्रम गुर्जर को फोन पर धमकी दी है कि ग्रामीण गांव में गिरोह के सरगना राजेन्द्र उर्फ गट्टा का चबूतरा बनवाय, अन्यथा तबाही मचा दी जाएगी। डकैत पप्पू गुर्जर ने मोरावन निवासी विक्रम गुर्जर को फोन पर यह बात भी कही कि ग्रामीण बार-बार पुलिस की शरण लेंगे तो वह गांव की पुलिस चौकी पर भी हमला कर देगा। डकैतों की इस धमकी से मोरावन और नसीहर के ग्रामीणों में इतनी दहशत है कि उन्होंने घर से निकलना बंद कर दिया है। मोरावन के ग्रामीण अब दूसरी जगह डेरा डालने के लिए जगह खोज रहे हैं। धमकी की खबर के बाद चंबल आईजी एसडब्लू नकवी ने शुक्रवार को एसपी महेन्द्र सिंह सिकरवार के साथ मोरावन और हथेड़ी गांव का दौरा किया और ग्रामीणों से चर्चा की और उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया, लेकिन ग्रामीणों की दहशत अभी भी कम नहीं हुई है। है।
एक व्यक्ति के मोबाइल पर धमकी दी गई है। गांव में सुरक्षा व्यवस्था भी बड़ा दी गई है। ग्रामीणों को समझाया जा रहा है कि वे वहीं रहें, पुलिस पूरी तरह से सतर्क हैं।
महेन्द्र सिंह सिकरवार
पुलिस अधीक्षक
शनिवार, 22 अक्तूबर 2011
चंबल घाटी विकास होगा चुनाव का मुद्दा
चंबल घाटी विकास होगा चुनाव का मुद्दा
चंबल के विकास के लिए केंद्र से 12 हजार करोड़ का पैकेज
इटावा। इस बार चुनाव में चंबल का इलाका फिर छाया रहेगा, लेकिन इस बार इसका कारण डकैतों के फरमान नहीं बल्कि विकास की आवास होगी। इलाके की एक समिति ने चंबल घाटी के विकास के सवाल को उठाते हुए इसे चुनाव का मुद्दा बनाने का ऐलान किया है। इस समिति ने चंवल के विकास को हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा करने की भी मांग की है।
लोक समिति चंबल घाटी समग्र विकास आंदोलन का दूसरा चरण दीपावली के बाद शुरू कर इसे आने वाले विधान सभा चुनाव में मुद्दा बनाएंगी।
समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुल्तान सिंह ने कहा कि समिति विधान सभा चुनाव में उस पार्टी और उम्मीदवार का समर्थन करेगी जो विधान सभा में पहुंचकर क्षेत्र के समग्र विकास के लिए आवाज बुंलद करेगा। लोक समिति पिछल्ले दो वषों से भारत सरकार से बीहड़ क्षेत्र विकास के लिए संघर्ष कर रही है। इसके लिए इटावा, भिंड तथा आगरा में धरना-प्रदर्शन और अनशन कर प्रधानमंत्री को ज्ञापन भी दिये जा चुके हैं। दूसरे चरण का आंदोलन प्रभावी बनाने के लिए पंचनदा से लेकर मुरैना तक जनजागरण यात्रा शुरू की जाएगी तथा इसा समापन मुरैना में धरना-प्रदर्शन कर होगा।
लोकसमिति एक ओर चंबल घाटी समग्र विकास के लिए भारत सरकार से 12000 करोड़ के पैकेज की मांग कर रही है। वही दूसरी ओर कंपिल से कन्नौज तक गंगा-रामगंगा क्षेत्र को बाढ़ मुक्त कराने के लिए नदियों के दोनों और तटबंध बनाने की मांग शुरू हो चुकी है। चंबल घाटी क्षेत्र इटावा, आगरा, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, धौलपुर, भरतपुर तक 38000 वर्ग किमी में फैला है, जो अत्यंत गरीब और पिछड़ा है। इसकी उप्र, मप्र तथा राजस्थान की सरकारों द्वारा घोर उपेक्षा की गई है।
मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011
डकैतों के डर से कोलूपुरा बस्ती खाली
- कूनों नदी के किनारे पालपुर तक चल रही पुलिस की सर्चिंग कूनों(श्योपुर) के बीहड़ से खास रिपोर्ट
पप्पू गिरोह की वारदात के बाद मोरावन, नहीयर, कोलूपुरा के लोगों में दहशत हैं। डकैतों के डर से कोलूपुरा बस्ती के लोग पलायन कर चुके हैं। कुछ लोगों ने अस्थाई रूप से मोरावन में डेरा डाल लिया है, वहीं कुछ लोग कराहल में रहने की जुगाड़ बिठा रहे हैं। घटना की रात से ही पुलिस कूनों नदी के दोनों किनारों पर सर्चिंग कर रही है, लेकिन अभी तक डकैतों का कोई सुराग नहीं मिला है। पुलिस की सर्चिंग पार्टिंया प्राथमिकता के तौर पर उन लोगों की तलाश कर रही है, जो लोग डकैतों को रसद पहुंचाते हैं।
मालूम हो, गट्टा गिरोह के सरगना पप्पू ने शनिवार की रात को हथेड़ी गांव की खिरकाईयों पर आधा दर्जन ग्रामीणों की मारपीट कर एक युवक मोहर सिंह का हाथ और नाक काट दी थी। घटना के बाद से ही कराहल क्षेत्र में दहशत का माहौल बन गया है। मोरावन, नसीयर और सेसईपुरा में सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल भी तैनात कर दिया गया है। पप्पू गुुर्जर गिरोह की दहशत से कोलूपुरा बस्ती में रहने वाले एक दर्जन परिवारों मेें से कुछ परिवार तो शनिवार को ही बस्ती खाली कर मोरावन पहुंच गए थे। शेष लोगों ने रविवार को कराहल और सेसईपुरा में डेरा डाल लिया है। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजय सिंह ने बताया कि घटना के बाद से ही डकैतों की तलाश में पुलिस की पार्टिंया सर्चिंग कर रही हैं। प्राथमिकता के तौर पर कूनों नदी के दोनों किनारों पर बसे गांवों में डकैतों की तलाश की जा रही है। उन्होंने बताया कि नबलपुरा, दौलतपुरा, मोरावन से लेकर पालपुर तक के गांवों में पुलिस प्राथमिकता के तौर पर उन लोगों को पकडऩे का प्रयास कर रही है, जो इस गिरोह को दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली सामग्री पहुंचाते हैं।
पीडि़तों से मिलने पहुंचे जनप्रतिनिधि...
घटना के बाद से ही डकैतों का शिकार हुए भयभीत ग्रामीणों से मिलने के लिए मोरावन गांव में जनप्रतिनिधियों का तांता शुरू हो गया। ग्वालियर में भर्ती मोहर सिंह से शनिवार को वन विकास निगम के उपाध्यक्ष बाबूलाल मेवरा मिले, वहीं शाम को क्षेत्रीय विधायक रामनिवास रावत मोरावन पहुंच गए। रविवार की सुबह जिला पंचायत अध्यक्ष गुड्डीबाई ने भी मोरावन पहुंचकर पीडि़तों से चर्चा की है।
...तो खाली कर देंगे गांव
नाम नहीं छापने की शर्त पर पप्पू गिरोह से भयभीत मोरावन, नसीहर के ग्रामीणों ने बताया कि बार-बार डकैत मोरावन पर हमला कर रहे हैं, बावजूद इसके पुलिस गिरोह को पकड़ नहीं पा रही है। यदि यही हालात रहे तो हम लोग गांव से पलायन कर जाएंगे।
गट्टा गिरोह की पुलिस को खुली चुनौती
मोरावन के हथेड़ी गांव की खिरकाई पर रात भर मचाया तांडव
मोटर साइकिल जलाई, युवक का हाथ और नाक काटे
मध्यप्रदेश के श्योपुर से एक रिपोर्ट
डकैत राजेन्द्र गुर्जर उर्फ गट्टा की मौत के बाद गिरोह के सरगना बने पप्पू गुर्जर ने एक बार फिर खुले शब्दों में पुलिस को चेतावनी दी है। डकैत पप्पू गुर्जर ने एक पत्र के माध्यम से पुलिस अधीक्षक व एसडीओपी को धमकी दी है कि गट्टा की मौत के साथ जो सामान मोरावन, नसीहर और कोलूपुरा के ग्रामीणों ने लूटा है, पुलिस उसे तत्काल वापस दिलाए अन्यथा तीनों गांवों में तबाही मचा दूंगा। उसने सिर्फ धमकी ही नहीं दी बल्कि वह क्या कर सकता है यह दिखाने के लिए मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के हथेड़ी गांव की खिरकाइयों पर रात भर तांडव मचाया। मोटरसाइकिल को आग के हवाले किया, वहीं गुर्जर समाज के मोरावन व नसीहर में रहने वाले छह ग्रामीणों की जमकर मारपीट की और जाते-जाते एक का हाथ व नाक काट ले गया। खबर मिलते ही मौके पर पहुंची पुलिस ने गंभीर रूप से घायल हुए युवक को ग्वालियर उपचार के लिए भेज दिया है।
घटनाक्रम के मुताबिक शुक्रवार की रात करीब साढ़े ८ बजे पुलिस की वर्दी में डकैत पप्पू गुर्जर अपने ६ हथियारबंद साथियों के साथ हथेड़ी गांव की खिरकाईयां पर पहुंच गया। पहले तो डकैतों ने खिरकाई पर सो रहे निहाल सिंह (२७) पुत्र मानसिंह, सोहनसिंह (२५) पुत्र नारायण सिंह, मुकेश (२५) पुत्र मानसिंह निवासी नसीहर को जगाया और फिर चाय पीने की इच्छा जाहिर की। इस दौरान डकैतों का व्यवहार घटना के विपरीत था। बातों ही बातों में गिरोह के सरगना पप्पू गुर्जर ने तीनों युवकों से खिरकाई पर कितने लोग हैं, कौन कहां गया है, की जानकारी ले ली। करीब साढ़े ९ बजे जैसे ही पहले से डीजल लेने गए मोहर सिंह (२७) पुत्र हरीलाल, पंजाब (१८) पुत्र अमरसिंह, मुकेश (२१) पुत्र नारायण निवासी मोरावन वापस खिरकाईयों पर पहुंचे, डकैतों को अपने तीनों साथियों के पास बैठे देख उनकी रुह कांप गई। डकैतों ने पहले तो सबके साथ बैठकर चाय पी और फिर करीब साढ़े १० बजे अपना असली रूप दिखा दिया। एक-एक कर गिरोह के सदस्यों ने ग्रामीणों की पहले तो मारपीट की और फिर पुलिस के नाम एक चि_ी थमा कर मोहर सिंह (२७) पुत्र हरीलाल निवासी मोरावन का बांया हाथ व नाक काट दिए। जाने से पहले डकैतों ने खिरकाई पर बनी पाटोर के बाहर रखी मोहर सिंह की मोटर साइकिल की टंकी में जलती माचिस की तीली डालकर उसे आग के हवाले कर दिया। डकैतों के जाने के बाद भयभीत ग्रामीण गिरते-पड़ते टिकटोली पहुंचे, जहां से उन्होंने अपने परिजनों को सूचना दी। परिजनों ने तत्काल घटना से सेसईपुरा थाना पुलिस को अवगत कराया। घटना के तीन घंटे बाद मौके पर पहुंची पुलिस गंभीर रूप से जख्मी मोहर सिंह को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र कराहल लेकर आई, जहां से प्राथमिक उपचार के बाद डॉक्टरों ने उसे ग्वालियर के लिए रेफर कर दिया।
क्या लिखा है गिरोह के सरगना पप्पू ने...
गट्टा गिरोह के सरगना पप्पू गुर्जर टाइगर ने पुलिस अधीक्षक और एसडीओपी कराहल व सेसईपुरा थाना प्रभारी को सम्बोधित करते हुए लिखा है कि गिरोह के सरगना गट्टा की मौत के समय ग्रामीणों ने गिरोह के १५९ कारतूस व दो लाख ७७ हजार रुपए, पांच तौला सोने की जंजीर, चार अंगूठी, चार मोबाइल पुलिस को नहीं मिल हैं। क्योंकि ग्रामीणों ने छुपा लिए थे। पुलिस गिरोह के सामान को दिलाए, अन्यथा मोरावन, नसीयर और कोलूपुरा में तबाही मचा दूंगा।
पहले भी कई बार किया है गिरोह ने मोरावन में हमला...
गिरोह के सरगना राजेन्द्र गुर्जर उर्फ गट्टा की मौत के बाद गिरोह के साथियों ने गट्टा की मौत का बदला लेने के लिए पहले भी कई बार ग्रामीणों को धमकी दी है। ६ जनवरी को जहां गिरोह ने ग्रामीणों को धमकाया था, वहीं ४ जून की रात को मोरावन निवासी पप्पू गुर्जर के घर पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी। खरीफ की बोवनी से पूर्व भी गट्टा गिरोह ने ग्रामीणों को कई बार मोरावन गांव में आकर खेती करने से रोका था।
कैसे हुई थी गिरोह के सरगना गट्टा की मौत...
गिरोह का सरगना राजेन्द्र गुर्जर उर्फ गट्टा ३ जनवरी २०११ की रात को अपने साथियों के साथ मोरावन गांव में रुका था। शराब पीने के बाद गिरोह में आपस में विवाद हो गया। इस बीच जमकर गोलीबारी हुई, जिसमें गिरोह के मुखिया गट्टा की मौत हो गई। गिरोह के बचे हुए साथियों को शक हुआ कि गट्टा की मौत मोरावन निवासी पप्पू गुर्जर की गोली से हुई है, तभी से गिरोह मोरावन गांव को निशाना बनाए हुए है।
क्या चाहता है पप्पू गुर्जर का गिरोह...
पप्पू गुर्जर गिरोह ने कई बार मोरावन गांव में आकर गिरोह के पूर्व सरगना राजेन्द्र उर्फ गट्टा की याद में गांव के बीचों-बीच चबूतरा बनाने की मांग रखी है। गांव वाले चबूतरा इसलिए नहीं बनाना चाहते कि पुलिस उन पर गिरोह से मिले होने का आरोप लगाएगी। एक ओर पुलिस का भय दूसरी ओर डकैतों का खौफ ग्रामीणों की जिंदगी को नर्क बनाए हुए है।
दहशत में हैं तीनों गांवों के निवासी...
डकैतों का ग्रामीणों में इतना भय है कि वह पुलिस और मीडियाकर्मियों से बात करने तक को तैयार नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि कई बार गिरोह के सरगना पप्पू गुर्जर ने ग्रामीणों को पुलिस और मीडियाकर्मियों से रूबरू होने पर जान से मारने की धमकी दी है। यही वजह है कि ग्रामीण कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है।
क्या कहते हैं पुलिस अधीक्षक
- पुलिस पार्टियां सर्चिंग के लिए जंगल की तरफ कूच कर चुकी हैं। यह बात सही है कि पहले भी इस गिरोह ने मोरावन में गोलीबारी की है। गिरोह के खात्मे के लिए पुलिस पूरी तरह से प्रयासरत है।
महेन्द्र सिंह सिकरवार
पुलिस अधीक्षक
बुधवार, 10 अगस्त 2011
फक्कड़ और कुसुमा नाइन सहित पांच को आजीवन कारावास
इटावा। न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश दस्यु प्रभावित क्षेत्र अदालत में 13 वर्ष पुराने अपहरण हत्या जैसे संगीन मामले में विशेष न्यायाधीश संदीप जैन ने पूर्व दस्यु कुख्यात रामआसरे उर्फ फक्कड़ और कुसमा नाइन सहित पांच लोगों का आजीवन कारावास की सजा सुनायी तथा सभी से 25-25 हजार का अर्थदंड भी वसूलने का आदेश दिया।
भरेह थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम हरोली निवासी वादिनी हीरा देवी द्वारा तीन जुलाई 1998 को लिखित शिकायत के आधार पर बताया कि फक्कड़ गिरोह द्वारा ग्राम हरोली के ग्राम प्रधान को बंधक बनाकर उसके छोटे भाई सत्यवीर सिंह द्वारा उसके पति आदेश तिवारी को बुलाया गया। उसके एक सप्ताह बाद पांच लाख की फिरोती की मांग की गयी। एक अक्टूबर 1998 को मुकदमा दर्ज किया गया। उक्त घटना की विवेचना तत्कालीन थानाध्यक्ष भरेह लल्लूराम द्वारा की गई थी एक तथ्य और सामने आया कि जिस दिन आदेश तिवारी का अपहरण फक्कड़ गिरोह द्वारा किया था। उसी दिन गांव से शिवशंकर का भी अपहरण किया गया परन्तु फिरोती देकर वह छूट आया था। उसी ने ब्यान दिया कि फक्कड़ ने आदेश तिवारी को अभियुक्तगण रामकरन चौबे, भगवान दास, श्रीनारायण और विशंबर को सौंप दिया था। उसके बाद इन चारों अभियुक्तों को आदेश तिवारी को कुल्हाड़ी से काटते हुये देखा है। उसने यह भी ब्यान दिया कि उक्त अभियुक्तों ने हत्या में प्रयोग की गयी कुल्हाड़ी को खून से सनी हुयी रामआसरे उर्फ फक्कड़ को दे दी। देते समय फक्कड़ ने कहा था कि यदि शिवशंकर और अन्य ने अगर तीन-तीन लाख नहीं दिये तो उनका भी यही हाल होगा। यह भी बताया कि आदेश की लाश को उसी दिन शाम सात बजे उपरोक्त अभियुक्तगणों ने एक बोरे में भरकर क्वारी नदी में फेंक दी थी।
अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद तमाम गवाहों को भी सुना तत्पश्चात यह आदेश दिया कि उक्त मामले में अभियुक्त श्रीनारायन उर्फ गिल्लू पुत्र राजाराम दुबे को तथा रामकरन चौबे पुत्र शंभूदयाल चौबे निवासी ग्राम हरौली थाना भरेह तथा तीसरा अभियुक्त विशंभर सिंह पुत्र जंगीसिंह उर्फ जंगबहादुर निवासी बसरी थाना विठोली तथा राम आसरे उर्फ फक्कड़ और कुसमा नाइन का आदेश तिवारी की हत्या के अपराध में धारा 302 भादसं सश्रम कारावास तथा 15 हजार रुपया अर्थदंड तथा अर्थदंड न करने पर दो वर्ष के अतिरिक्त सश्रम कारावास से दंडित किया। उपरोक्त मामले में राज्य की ओर से शासकीय अधिवक्ता दयाशंकर शुक्ला ने पैरवी की।
मंगलवार, 28 जून 2011
नौ सो चूहे खाकर...नया काम अन्ना का साथ देंगी दस्यु सुंदरी सीमा परिहार
पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा परिहार ने ऐलान किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ गांधीवादी नेता अन्ना हजारे की लड़ाई में वह साथ देंगी और 16 अगस्त से जंतर मंतर दिल्ली में प्रस्तावित अनशन में उनके साथ बैठेंगी।
सियासत से तौबा कर चुकी सीमा परिहार ने 'दैनिक जागरण' से विशेष भेंट में कहा कि भ्रष्टाचार समाज के लिए कोढ़ बन चुका है, इसलिए इस मसले पर सियासी दलों को भी वोट बैंक की सियासत करने से बाज आना चाहिए।
लोकपाल विधयेक और इससे संबंधित मसौदे से अनभिज्ञ सीमा परिहार ने कहा कि उसे विधेयक और मसौदे के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन वह इतना जानती है कि भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए और ऐसा कानून बनना चाहिए, जिससे भ्रष्टाचारियों को कड़ी सजा मिले। इसके लिए वे गांधीवादी नेता अन्ना हजारे और योग गुरु बाबा रामदेव की लड़ाई में वह पूरी तरह साथ हैं। भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति [महिला] की राष्ट्रीय अध्यक्ष सीमा ने बताया कि अनशन शुरू होने से पहले वह अन्ना हजारे और बाबा रामदेव से मुलाकात करेंगी।
मंगलवार, 21 जून 2011
उम्मीद जगाती एक नदी का रुदन
प्लांट के लिए चंबल से डाली जा रही पाइपलाइन
चंबल में कैटफिश
खूंखार, खौफनाक, खतरनाक.. .. .. ऐसे विशेषण जुड़े हैं उससे। रोंगटे खड़ी कर देने वाली घटनाओं की गवाह उसकी छाती ने सदियों से बहुत सहा, लेकिन आज वह जो सह रही है उसका रुदन सुनने वाला कोई नहीं। पूरे देश की नदियां जहां पानी की कमी और प्रदूषण की मार से जूझ रही हैं ऐसे संकट के समय में भी चंबल नदी उम्मीद जगा रही है। उम्मीद लुप्त हो चुके जलचरों के बचे रहने की। उम्मीद साफ पानी के बहाव की और उम्मीद अपने बचे रहने की।
इंदौर के पास विंध्य की पहाड़ियों में मऊ स्थान से निकलकर उत्तर से दक्षिण की ओर बहने वाली यह नदी राजस्थान, मध्यप्रदेश की सीमा में 900 किलोमीटर बहने के बाद इटावा के पास यमुना को जीवन देती है। जीवन इसलिए कि दिल्ली से चलकर इटावा तक पहुंचते-पहुंचते यमुना अपनी शक्ति खो चुकी होती है। चंबल की धार के दम पर ही यमुना इलाहाबाद तक अपना सफर तय करती है। ऐसे समय जब देश की तमाम नदियां प्रदूषण की मार से अधमरी हुई जा रही हैं, चंबल की गिनती आज भी देश की सबसे कम प्रदूषण वाली नदियों में होती है। वेदों में चर्मणी, चर्मरा, चर्मावती नाम की यह नदी आज ऐसे जलचरों का आवास बनी है जिन्हें विलुप्त श्रेणी के ए वर्ग में दर्ज किया गया है। ए यानी ऐसा वर्ग जिस पर खतरा सबसे अधिक है। कई जलचर तो ऐसे है जो सिर्फ इसी नदी में पाए जाते हैं। आठ प्रजाति के कछुआ ढोंगेंका, टेटोरिया, ट्राइनेस, लेसीमान पंटाटा, चित्रा एंडका और इंडेजर, ओट्टर के साथ ही एलिगेटर की दो प्रजाति वाले घड़ियाल, मगर और गंगा डाल्फिन का चंबल स्थायी आवास बन चुकी है। इसके साथ ही ब्लैक बेलिएड टर्नस, सारस, क्रेन, स्ट्रॉक पक्षी इन नदी में कलरव करते हैं। स्कीमर पक्षी तो सिर्फ चंबल में ही पाया जाता है।
960 किलोमीटर तक अविरल धार वाली इस नदी का इतिहास कम वैभवशाली नहीं रहा है। पांचाल राज्य की दक्षिणी सीमा बनाने वाली इस नदी क्षेत्र के एक बड़े भूभाग में शकुनि का राज्य रहा। इसका नाम चर्मावती होने के पीछे कथा है कि वैदिक काल में राजा रंतिदेव ने यहां अग्निहोत्र यज्ञ कर इतने जानवरों की बलि दी कि इस नदी के किनारे चमड़े से भर गए। इन कारण इस नदी का नाम चर्मणी हुआ। तमिल भाषाओं में चंबल का अर्थ मछली भी है। इस नदी में कैटफिश करोड़ों की संख्या में आज भी मिलती हैं। पांचाल राज्य की द्रोपदी ने भी इस नदी का पानी पिया और उसकी पहल पर ही राजा द्रुपद ने पहली बार इस नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की पहल कर इसके किनारों को अपवित्र करने को निषेध कर दिया।
देश की सबसे साफ नदियों में दर्ज इस नदी का आज सबसे अधिक शोषण हो रहा है। इन नदी के सौ किलोमीटर क्षेत्र में पहले से ही गांधी सागर, राणा प्रताप, जवाहर सागर और कोटा बैराज बांध मौजूद होने के बाद अब इसके पानी से भरतपुर और धौलपुर की प्यास बुझाने की तैयारी की जा रही है। जनता की प्यास बुझाने में किसी को शायद ही कोई गुरेज हो लेकिन यह काम चंबल के पानी को लिफ्ट कर किया जाना है। 137 करोड़ रुपये लागत की इस परियोजना से धौलपुर के 69 और भरतपुर के 930 गांवों को पानी दिया जाएगा। धौलपुर के लिए 25.6 मिलियन लीटर और भरतपुर को 220 मिलियन लीटर पानी चंबल से उठाया जाएगा। यही चिंता का विषय है क्योंकि गर्मी के दिनों में चंबल पानी की कमी से जूझती है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के डायरेक्टर पीआर सिन्हा का कहना है कि इन जलचरों के जिंदा रहने के लिए चंबल में हर हाल में 10 मीटर पानी रहना जरूरी है। आज हालत यह हैं कि कोटा से लेकर धौलपुर के बीच कई स्थानों पर ग्रामीण चंबल को पैदल ही पार कर जाते हैं। ऐसे में राजस्थान सरकार की चंबल से पानी उठाने की योजना चंबल के सांस लेने पर सवाल खड़े कर रही है।
बुधवार, 25 मई 2011
गर्मी से हार गया बीहड़ हिलाने वाला
सन 60 के दशक में चंबल के बीहड़ों में मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश की पुलिस को घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले डकैत माखन सिंह सिकरवार (जिन्होंने 1972 में आत्मसमर्पण कर दिया था) की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई। पूर्व डकैत माखन सिंह की लाश सिविल लाइन थाना क्षेत्र के शिकारपुर रेलवे फाटक के पास से बरामद की गई है। पुलिस की प्राथमिकी जांच में पूर्व डकैत की मौत अत्यधिक गर्मी तथा प्यास से होना बताया जा रहा है, लेकिन अभी यह रहस्य ही बना हुआ है कि आखिर पूर्व डकैत शिकारपुर रेलवे फाटक के पास किस प्रयोजन से आये थे जबकि इस क्षेत्र में उनका कोई नाते-रिश्तेदार या कोई जान पहचान वाला भी नहीं रहता है।
सिविल लाइन थाना पुलिस ने बताया कि पूर्व डकैत माखन सिंह सिकरवार, 70 वर्ष, निवासी अजीतपुरा, 21 मई को बाजार की कहकर निकले थे। जब दो तीन दिन तक वो घर वापस नहीं लौटे तो उनके परिजनों ने उन्हें खोजना शुरू किया था। मंगलवार की शाम सिविल लाइन थाना पुलिस को शिकारपुर रेलवे फाटक के पास से एक अज्ञात लाश मिली थी। पुलिस ने पूर्व डकैत माखन सिंह सिकरवार के परिजनों को फोन कर लाश की शिनाख्ती के लिये बुलाया तो उनकी मौत का खुलासा हुआ। लाश ज्यादा पुरानी नहीं है, संभवत: मौत मंगलवार की दोपहरी में ही हुई है। फिलहाल मौत के कारण भी स्पष्ट नहीं हो सके हैं। प्रारंभिक जांच के आधार पर प्यास का कारण मौत होना प्रतीत हो रहा है। इस मामले में इससे अधिक पीएम रिपोर्ट के आने के बाद ही कहा जा सकता है।
सन् 72 में गांधी आश्रम में डाले थे हथियार
पुलिस रिकार्ड के मुताविक पूर्व डकैत माखन सिंह सिकरवार ने 16 अप्रैल 1972 में जौरा के गांधी आश्रम में जयप्रकाश नारायण तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद सेठी के सामने अपने 45 सदस्यों की गैंग के साथ आत्मसमर्पण किया था। विदित हो कि चंबल के बीहड़ों में राज करने वाले दुर्दांत डकैतों में से 511 ने आत्मसमर्पण किया था।
सलाम साहिब था तकिया-कलाम
पूर्व डकैत माखन सिंह की सन 60 के दशक में चंबल के बीहड़ों में तूती बोलती थी। उनकी गिरोह बड़ी गिरोहों में शामिल थी। जिसमें 45 डकैत थे और सभी अपने आपमें कई खूबियों को समेटे हुये थे। आत्मसमर्पित पूर्व डकैत माखन सिंह गिरोह के सरदार थे तथा सलाम साहिब उनका तकिया-कलाम हुआ करता था। एक तरह से यह गिरोह के सदस्यों के लिये मुख्य संदेश हुआ करता था। जिसका मतलब था कि सब खैरियत है। सन 72 में सामूहिक आत्मसमर्पण के बाद सन 82 तक जेल में रहने वाले माखन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के सामने भी भविष्य में बंदूक न उठाने की कसम खाई थी। कसम से पूर्व स्व. अर्जुन सिंह को पूर्व डकैत माखन सिंह ने जेल से सिर्फ सलाम साहिब का संदेश भेजा था, जिसका अर्थ था अब सब खैरियत है तथा गृहस्थ जीवन जीना चाहते हैं और तब से लेकर आज तक आत्मसमर्पित डकैत माखन सिंह सिकरवार दादा ने अपने हाथों में बंदूक नहीं उठाई तथा ताउम्र समाजसेवा में बिता दी।
जुल्मों अत्याचार के खिलाफ उठाई थी बंदूक
पुलिस रिकार्ड के मुताविक आत्मसमर्पित पूर्व डकैत माखन सिंह सिकरवार सन् 50 के दशक में देवगढ़ थाना क्षेत्र के नंदगांगोली गांव में सपरिवार निवास करते थे। गांव के दबंग उनके परिवारजनों पर अन्याय अत्याचार करते थे। स्वभाव में काफी सरल व सौम्य माखन सिंह सिकरवार ने बचपन से लेकर जवानी की दहलीज तक दबंगों के अन्याय-अत्यार को सहन करते रहे। लेकिन कब तक। एक दिन उन्होंने अपने छोटे भाई देवी सिंह सिकरवार के साथ बंदूक उठाई और दो हत्याओं को अंजाम देने के बाद बीहड़ की राह पकड़ ली। तब से लेकर अपने पूरे डकैती जीवन के दौरान जुल्मोसितम को जड़ से खत्म करने की मशक्कत में जुटे रहे। एक समय ऐसा भी आया जब डकैत माखन सिंह सिकरवार की बंदूक बीहड़ों में चलती तो उसकी गूंज समूचे देश में सुनाई देती थी।
छिद्दा-माखन की जोड़ी ने हिलाया था बीहड़
आत्मसमर्पित पूर्व डकैत माखन सिंह की गिरोह में उनका रिश्ते का भाई छिद्दा करीबन दस साल तक गिरोह में रहा था। डकैत माखन सिंह के पास सन् 60 के दशक मे आॅटोसेमी रायफल थी जो आज के समय में लाखों रुपये कीमत के बाद भी काफी मशक्कत से मिलती है। बीहड़ों में बड़े गिरोहों में शामिल रहे डकैत माखन सिंह की गिरोह का नाम छिद्दा माखन की गिरोह के नाम से पहचानी जाती थी। छिद्दा की मौत के बाद डकैत माखन काफी टूट गये थे तथा कुछ समय के लिये गिरोह की गतिविधियां भी शांत हो गई थीं, इसी का फायदा उठाकर पुलिस ने सन 60 में डकैत माखन सिंह के भाई देवी सिंह को एनकांउटर में मार गिराया था। इसके बाद डकैत माखन सिंह ने बीहड़ों में कई हत्यायें, लूट, डकैती तथा नरसंहारों को अंजाम दिया था। सबसे बड़ा नरसंहार पन्द्रह पुलिस कर्मियों का था। जिसे डकैत माधौसिंह के साथ मिलकर दिया था। यह सर्चिंग पार्टी डकैत माखन सिंह के गिरोह के एनकांउटर के लिये गई थी।
पूर्व डकैत माखन सिंह का मरणोपरांत का छायाचित्र।
सन 82 के आसपास अजीतपुरा में अपने घर में नाती-पोतों के साथ खेलते पूर्व डकैत माखन सिंह।
सन 82 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन सीएम स्व. अर्जुन सिंह के सामने भागवत की कसम खाकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते पूर्व डकैत माखन सिंह।
मंगलवार, 26 अप्रैल 2011
चार हजार का इनामी डकैत गिरफ्तार
धौलपुर पुलिस ने चार हजार के कुख्यात डकैत औतारी गुर्जर को एक मुठभेड के दौरान एक रायफल और दस जिन्दा कारतूस सहित सोने के गुर्जा क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया है। औतारी का एक साथी पप्पू खनपुरा भाग जाने में सफल रहा। एसपी राहुल प्रकाश ने बताया कि मुखबिर द्वारा मिली सूचना के आधार पर बाड़ी थाना पुलिस एवं टाईगर रिजर्व फोर्स ने औतारी को सोने के गुर्जा के जंगलों में घेर लिया। पुलिस को देखकर औतारी ने फायरिंग की और पुलिस ने जबावी फायरिंग करते हुए औतारी को पकड़ लिया। एसपी ने बताया कि औतारी ने वर्ष 2008 में पुलिस के एक हैडकास्टेबल खेम सिंह की हत्या की थी और एक उपनिरीक्षक परसराम को गोली मारकर घायल कर दिया था। औतारी पर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती के करीब 24 मामलें विभिन्न थानों में दर्ज है।
रविवार, 17 अप्रैल 2011
घड़ियाल और डाल्फिन बचाने को जागा बोर्ड
पशु संरक्षण बोर्ड को आखिर चंबल में घड़ियाल और डाल्फिनों को बचाने की सुधि आ ही गई। नई जानकारी के मुताबिक बोर्ड ने चंबल नदी से सिंचाई और पीने के पानी के लिए शुरू की गईं नई परियोजनाओं पर रोक लगा दी है। ऐसा चंबल में पानी के गिरते स्तर के कारण किय गय है ताकि घड़ियाल और डाल्फिन के लिए संकट पैदा न हो। मध्य प्रदेश और राजस्थान की कई ऐसी परियोजनाओं का असर नदी के पानी पर पड़ रहा था। चंबल नदी से पानी उठाने के कारण उसका स्तर गिर रहा है। तीन साल पहले भी यहां लगभग 100 मगरमच्छ की मृत्यु हो गई थी.
पशु विशेषज्ञों का निष्कर्ष है कि चंबल का जल स्तर गिरने से मगरमच्छों की जान को खतरा पैदा हो गया है। इसलिए, उन्होंने इस तरह की सिफारिश की है।
राजस्थान सरकार ने हाल ही में धौलपुर के किनारे चंबल में पानी उठान के लिए एक संयंत्र लगाया है, लेकिन अब उसका भाग्य भी अधर में लटक गया है।
गुरुवार, 31 मार्च 2011
चंबल में लड़ मरेंगे डाल्फिन और घड़ियाल
चंबल नदी में पानी का स्तर चिंतनीय स्तर तक गिर गया है। क•ाी अपनी विशाल जल राशि से डराने वाली चंबल को इन दिनों लोग पैदल ही पार किए ले रहे हैं। सबसे बड़ा संकट डाल्फिन और घड़ियालों पर आने वाला है। डाल्फिन और घड़ियालों की चंबल में देश की एकमात्र सेंचुरी होने के कारण चिंता अधिक बढ़ गई है। मुरैना से विश्वजीत गोले की रिपोर्ट सा•ाार कल्पतरु एक्सप्रेस .. .. .. .. ..
विश्वजीत गोले
मुरैना। चंबल नदी में पानी का स्तर लगातार तेजी से कम हो रहा है। हालत यही रहे तो इस नदी में डाल्फिन और घड़ियालों के सामने •ोजन का संकट खड़ा हो जाएगा। वन्य प्राणी विशेषज्ञों को डर है कि इससे जलीय जीवों के बीच •ोजन के लिए जंग शुरू हो सकती है। इस संकट ने केंद्रीय वन मंत्रालय को •ाी संकट में डाल दिया है लेकिन समस्या से निपटने का उपाय अ•ाी किसी को नहीं सूझ रहा है।
वर्ष 2011 में की गई जलचरों की गणना में ऐसी स्थिति सामने आई है। चंबल के बीहड़ों को हिलाने वाले कुख्यात डकैतों को अपनी अथाह जलराशि से डराने वाली चंबल नदी, अब सूख रही है। जिसे सीधे शब्दों में कहें तो बांझ होती जा रही है। पानी कम होने से चंबल नदी में पलने वाले जलीय जीव मार्च माह में ही गहरे-गहरे गड्ढों में चले गए है। हर साल कम हो रहे पानी ने वन वि•ााग ही नहीं केन्द्रीय वन मंत्रालय तक को चिंता में डाल दिया है।
चंबल सेंचुरी में काम कर रही तमाम देशी व विदेशी स्वयं सेवी संस्थाएं तथा वन्य प्राणी विशेषज्ञ •ाी खासे चिंता में आ गए है। चंबल नदी का जलस्तर कैसे बढ़े अ•ाी फिलहाल इस संबंध में कोई निर्णय नहीं हुआ है। चंबल नदी में पानी की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सैकड़ों स्थानों पर नदी को पैदल ही पार किया जा सकता है। पानी कम होने की गति को देखते हुए, यह साफतौर पर झलकने लगा है कि महज दो वर्ष में ही चंबल नदी की जलधारा टूट जाएगी, और इसमें पलने वाले जलीय जीव डाल्फिन, मगर, कछुआ तथा विलुप्तप्राय घड़ियाल हमेशा के लिए यहां से खत्म हो जाएंगे।
चंबल नदी राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सीमा में बह रही है। चंबल नदी से राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में पानी की सप्लाई की जा रही है। जिसमें राजस्थान सरकार द्वारा तो •ाारी मात्रा में पानी का दोहन करने के लिए चंबल राजघाट पुल पर बकायदा अपने दो प्लांट लगा रखे हैं। जिनके जरिए हर रोज लाखों गैलन पानी निकाला जा रहा है। एक प्लांट से पानी थर्मल पावर प्लांट के लिए सप्लाई हो रहा है तो दूसरे से धौलपुर व •ारतपुर के लिए पानी •ोजा जा रहा है। चंबल नदी से अनेक नहर राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश क्षेत्र में आती है, जिनके जरिए से पानी को सिंचाई के लिए लिया जा रहा है। वन वि•ााग द्वारा जलचरों की गणना के लिए किए गए सर्वे के दौरान सवा पांच सौ किलोमीटर लंबी चंबल सेंचुरी में दो सैकड़ा से अधिक पुल मिले। इनमें से जलचरों के रहने लायक पुलों को छांटे तो वे 73 है। सर्वे में एक सैकड़ा से अधिक ऐसे स्थान मिले जहां चंबल नदी का पानी घुटनों से नीचे था तथा नदी को पैदल ही पार किया जा सकता है। पिछले पांच साल पूर्व की बात करें तो चंबल नदी में एक दर्जन स्थानों पर ही •ाीषण गर्मी के दिनों में चंबल नदी को पार किया जा सकता था, लेकिन कम होते जलस्तर ने इस संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि की है।
वर्जन बाक्स...
---------
प्रोजेक्ट फाइनल नहीं हुआ
"चंबल सेंचुरी में पानी हर साल तीव्र गति से कम हो रहा है। ये बहुत बड़ी चिंता का विषय है। पानी की कमी, •ाारी मात्रा में हो रहे दोहन से आई है। चंबल में पानी बढ़ाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि अ•ाी फिलहाल इस पर प्रोजेक्ट फाइनल नहीं हुआ है।"
आर.एस. सिकरवार
वन मंडलाधिकारी मुरैना
"सर्वे के दौरान चंबल नदी में पुलों की संख्या 73 मिली है। मगर, घड़ियाल तथा डाल्फिनों ने पुलों में पहुंचना शुरू कर दिया है। पुलों में इन्हें •ोजन संबंधी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। कमी होने पर टेरटरी बनाएंगें और तब तक इनके बीच •ोजन के लिए युद्ध की सं•ाावनाएं बढ़ जाती हैं।"
डॉ. ऋषिकेश शर्मा, वन्य प्राणी विशेषज्ञ
देवरी घड़ियाल ईको सेंटर मुरैना
शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011
निर्भय के जीवन पर फिल्म
यमुना नदी के बीहड़ों में बीहड़ फिल्म का मंचन इन दिनों चल रहा है। फिल्म का नाम मेरे ही ब्लाग पर बीहड़ ही है। इस फिल्म की शूटिंग का उद्घाटन शुक्रवार को औरैया के बीहड़ों में हाईकोर्ट के जज रवींद्र सिंह और कानपुर रेंज के आईजी ने किया। फिल्म डकैत निर्भर गुर्जर के जीवन पर आधारित है और इसमें निर्भय की भूमिका संजीव परिहार और सीमा परिहार की भूमिका में मुन्नी होंगी। इस फिल्म का निर्माण बुंडेड फिल्म बना चुके कृष्णा मिश्रा कर रहे हैं। संजय फिल्म गंगाजल में काम कर चुके हैं। शुक्रवार को निर्भय और सीमा की शादी का फिल्मांकन कर इसकी शुरुआत की गई।
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
दो घंटे फायरिंग फिर भी बच निकला
धौलपुर के बीहड़ में कुख्यात दस्यु पप्पू गुर्जर के साथ राजस्थान पुलिस ने दो घंटे गोलियां चलाईं फिर भी पूरा गिरोह बच निकला। पुलिस कप्तान धौलपुर कहते हैं कि गांव खनपुरा के पास बीहड़ में पुलिस ने गिरोह की घेराबंदी की गिरोह को समर्पण के लिए ललकारा पर क्या करे डकैतों ने गोली चलानी शुरू कर दिए और भाग गए। बड़े निष्ठुर निकले। कप्तान तक की नहीं सुनीं।
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
बीहड़ सुधार पर लालबुझक्कड़ी
आज इंडिया वाटर पोर्टल पर गया तो एक मजेदार जानकारी मिली। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को बीहड़ सुधार की याद आई है। उसने इसके लिए एक योजना भी तैयार की है। यानी बीहड़ को बेचने का बाकयदा प्लान तैयार कर लिया गया है। क्या है प्लान आइए जाने....
1971 में शुरू हुई केंद्र सरकार की योजना के अलावा केंद्र ने एक और बड़ा काम हाथ में लिया था। कई लोगों को यह जान कर अचरज होगा कि बीहड़ सुधार की यह योजना कृषि मंत्रालय की नहीं, गृह मंत्रालय की थी। उसकी निगाह में बीहड़ पर्यावरण की नहीं, डाकुओं की समस्या का केंद्र थे। कोई 500 से ज्यादा कुख्यात डाकू यहां तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान) की पुलिस को धता बताकर एक तरह से समानांतर सरकार चला रहे थे। 27 सालों में उस योजना पर कोई 1,224 करोड़ रुपये खर्च होने वाले थे। सात-सात साल के चार कालखंड बनाए गए थे। पहले खंड में तीनों राज्यों में कुल 55,000 हेक्टेयर नई जमीन खेती के लिए, 27,000 हेक्टेयर बाग-बगीचे के लिए और 27,500 हेक्टेयर वन संवर्धन और चरागाह के विकास के लिए जुटाने की बात थी। 2,20,000 हेक्टेयर ऊंची भूमि में मेड़बंदी, पानी की निकास नालियां और बीहड़ रोकने के बांध आदि का निर्णाण भी करना था।
पहले कालखंड में योजना पर 283.62 करोड़ रुपये खर्च होते और 3,273 इंजीनियरों, 11,376 कुशल कारीगरों और 2,40,00 से ज्यादा अकुशल मजदूरों को रोजगार मिलता। उससे कुल निवेश के 11 प्रतिशत की आय होती। लेकिन योजना लागू ही नहीं हुई। क्यों? 1972 में गांधीवादी कार्यकर्ताओं के अथक प्रयत्न से 500 से ज्यादा डाकुओं ने श्री जयप्रकाश नारायण के सामने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया, इसलिए हो सकता है गृह मंत्रालय ने सोचा हो कि अब बीहड़ो को सुधारने की क्या जरूरत है।
1977-78 में मध्य प्रदेश सरकार ने बीहड़ सुधारने की और ऊंचाई वाली भूमि की सुरक्षा की एक योजना केंद्र सरकार को पेश की। उसमें भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया और छतरपुर के जलग्रहण क्षेत्र के एक लाख हेक्टेयर को सुधारने की बात थी। यह योजना भी नई दिल्ली के नेताओं और नौकरशाहों के बीहड़ों में भटक कर रह गई। 1979 में एक बार फिर बीहड़ सुधार योजना खटाई में पड़ी। मध्य प्रदेश सरकार ने भूमि-सुधार योजना को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि केंद्र सरकार के तत्वाधान में चलाई जा रही योजनाएं बंद कर दी गई थीं और सुधार में प्रति हेक्टेयर खर्च बहुत बढ़ चला था।
चंबल घाटी विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री वी निगम के अनुसार बीहड़ सुधार के लिए सामान्य लाभ-हानि के नियम ठीक नहीं है। लागत का हिसाब दीर्घकालीन सामाजिक लाभों के आधार पर किया जाना चाहिए। श्री निगम के अनुसार पहले की योजनाओं के असफल होने का कारण यह है कि वे बहुत छोटी और छितरी हुई थीं और इन्हें एक समग्र रूप में देखने-समझने वाले लोगों की भी कमी थी। लागत का कोई ख्याल नहीं रखा गया और ज्यादातर योजनाओं के लागू होने में काफी देर की गई। फिर सुधारी गई जमीन की नीलामी बड़ी कड़ी शर्तों पर की जाने लगी तो गरीब किसानों की वहां तक पहुंच हो नहीं सकी। निजी प्रयास भी हो नहीं सके, क्योंकि बीहड़ सुधार के लिए सबसिडी की दरें बहुत कम थीं। किसानों को नलकूप बनाने के लिए तो 50 प्रतिशत खर्च और 3000 हजार रुपये तक की मदद मिलती थी, पर बीहड़ सुधार के लिए प्रति एकड़ सिर्फ 250 मिलते थे।
1966-67 में मध्य प्रदेश बन विभाग ने एक अलग भूमि संरक्षण विभाग स्थापित किया। इसको 1975 तक 12,000 हेक्टेयर जमीन सुधारने का काम दिया। लेकिन यह सारी जमीन राजस्व विभाग की परती जमीन थी इसलिए चराई और पेड़ो की छंटाई रोकी नहीं जा सकी क्योंकि उस पर केंद्रीय वन कानून लागू नहीं हो सकता था।
1980 में हवाई जहाज से बीज छिड़क कर वन लगाने की भी एक योजना बनी। इससे हर साल कोई 12,000 हेक्टेयर जंगल बढ़ाने की बात थी। 1980 में हवाई बुवाई तो की गई पर लक्ष्य पूरा नहीं हो सका।
चंबल घाटी विकास प्राधिकरण की परियोजना में वन संवर्धन शामिल नहीं था, फिर भी उसके महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता था। परियोजना ने चंबल कमांड क्षेत्र के किनारे वाले बीहड़ों में 11,000 हेक्टेयर जमीन में पेड़ लगाने का सुझाव रखा था। पहले चरण में, लगभग 115 किलोमीटर के घेरे में मिट्टी का तटबंध बनाकर उसमें घास लगाई गई। उसके समानांतर निकास-नालियां बनाई गईं ताकि अलग-अलग दर्रों से होकर पानी नदी में जा मिल सके। पहले चरण में लगभग 23,000 हेक्टेयर खेती की जमीन को बीहड़ बनने से बचाया गया। दूसरे चरण में दूसरे 150 किलोमीटर परिधि में, जहां भूक्षरण की मात्रा ज्यादा है, वैसा ही काम किया जाना है। इस प्रकार 25,000 हेक्टेयर जमीन सुधर सकेगी।
पर इस बीच, बीहड़ बेरोक-टोक फैलता जा रहा है। इसके लिए सरकार को ही दोषी ठहराया जाएगा। परिस्थिति की अहमियत ठीक से समझने की शक्ति उसमें नहीं है। हाल में चंबल घाटी के विकास के लिए 2000 करोड़ रुपयों की एक योजना घोषित की गई थी, पर अभी ठीक-ठीक नहीं मालूम नहीं है कि वह केवल चुनावों को ध्यान में रखकर ही तो नहीं की गई थी। पिछले अनुभव से अब कोई ज्यादा उम्मीद नहीं बनती है।
1971 में शुरू हुई केंद्र सरकार की योजना के अलावा केंद्र ने एक और बड़ा काम हाथ में लिया था। कई लोगों को यह जान कर अचरज होगा कि बीहड़ सुधार की यह योजना कृषि मंत्रालय की नहीं, गृह मंत्रालय की थी। उसकी निगाह में बीहड़ पर्यावरण की नहीं, डाकुओं की समस्या का केंद्र थे। कोई 500 से ज्यादा कुख्यात डाकू यहां तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान) की पुलिस को धता बताकर एक तरह से समानांतर सरकार चला रहे थे। 27 सालों में उस योजना पर कोई 1,224 करोड़ रुपये खर्च होने वाले थे। सात-सात साल के चार कालखंड बनाए गए थे। पहले खंड में तीनों राज्यों में कुल 55,000 हेक्टेयर नई जमीन खेती के लिए, 27,000 हेक्टेयर बाग-बगीचे के लिए और 27,500 हेक्टेयर वन संवर्धन और चरागाह के विकास के लिए जुटाने की बात थी। 2,20,000 हेक्टेयर ऊंची भूमि में मेड़बंदी, पानी की निकास नालियां और बीहड़ रोकने के बांध आदि का निर्णाण भी करना था।
पहले कालखंड में योजना पर 283.62 करोड़ रुपये खर्च होते और 3,273 इंजीनियरों, 11,376 कुशल कारीगरों और 2,40,00 से ज्यादा अकुशल मजदूरों को रोजगार मिलता। उससे कुल निवेश के 11 प्रतिशत की आय होती। लेकिन योजना लागू ही नहीं हुई। क्यों? 1972 में गांधीवादी कार्यकर्ताओं के अथक प्रयत्न से 500 से ज्यादा डाकुओं ने श्री जयप्रकाश नारायण के सामने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया, इसलिए हो सकता है गृह मंत्रालय ने सोचा हो कि अब बीहड़ो को सुधारने की क्या जरूरत है।
1977-78 में मध्य प्रदेश सरकार ने बीहड़ सुधारने की और ऊंचाई वाली भूमि की सुरक्षा की एक योजना केंद्र सरकार को पेश की। उसमें भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया और छतरपुर के जलग्रहण क्षेत्र के एक लाख हेक्टेयर को सुधारने की बात थी। यह योजना भी नई दिल्ली के नेताओं और नौकरशाहों के बीहड़ों में भटक कर रह गई। 1979 में एक बार फिर बीहड़ सुधार योजना खटाई में पड़ी। मध्य प्रदेश सरकार ने भूमि-सुधार योजना को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि केंद्र सरकार के तत्वाधान में चलाई जा रही योजनाएं बंद कर दी गई थीं और सुधार में प्रति हेक्टेयर खर्च बहुत बढ़ चला था।
चंबल घाटी विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री वी निगम के अनुसार बीहड़ सुधार के लिए सामान्य लाभ-हानि के नियम ठीक नहीं है। लागत का हिसाब दीर्घकालीन सामाजिक लाभों के आधार पर किया जाना चाहिए। श्री निगम के अनुसार पहले की योजनाओं के असफल होने का कारण यह है कि वे बहुत छोटी और छितरी हुई थीं और इन्हें एक समग्र रूप में देखने-समझने वाले लोगों की भी कमी थी। लागत का कोई ख्याल नहीं रखा गया और ज्यादातर योजनाओं के लागू होने में काफी देर की गई। फिर सुधारी गई जमीन की नीलामी बड़ी कड़ी शर्तों पर की जाने लगी तो गरीब किसानों की वहां तक पहुंच हो नहीं सकी। निजी प्रयास भी हो नहीं सके, क्योंकि बीहड़ सुधार के लिए सबसिडी की दरें बहुत कम थीं। किसानों को नलकूप बनाने के लिए तो 50 प्रतिशत खर्च और 3000 हजार रुपये तक की मदद मिलती थी, पर बीहड़ सुधार के लिए प्रति एकड़ सिर्फ 250 मिलते थे।
1966-67 में मध्य प्रदेश बन विभाग ने एक अलग भूमि संरक्षण विभाग स्थापित किया। इसको 1975 तक 12,000 हेक्टेयर जमीन सुधारने का काम दिया। लेकिन यह सारी जमीन राजस्व विभाग की परती जमीन थी इसलिए चराई और पेड़ो की छंटाई रोकी नहीं जा सकी क्योंकि उस पर केंद्रीय वन कानून लागू नहीं हो सकता था।
1980 में हवाई जहाज से बीज छिड़क कर वन लगाने की भी एक योजना बनी। इससे हर साल कोई 12,000 हेक्टेयर जंगल बढ़ाने की बात थी। 1980 में हवाई बुवाई तो की गई पर लक्ष्य पूरा नहीं हो सका।
चंबल घाटी विकास प्राधिकरण की परियोजना में वन संवर्धन शामिल नहीं था, फिर भी उसके महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता था। परियोजना ने चंबल कमांड क्षेत्र के किनारे वाले बीहड़ों में 11,000 हेक्टेयर जमीन में पेड़ लगाने का सुझाव रखा था। पहले चरण में, लगभग 115 किलोमीटर के घेरे में मिट्टी का तटबंध बनाकर उसमें घास लगाई गई। उसके समानांतर निकास-नालियां बनाई गईं ताकि अलग-अलग दर्रों से होकर पानी नदी में जा मिल सके। पहले चरण में लगभग 23,000 हेक्टेयर खेती की जमीन को बीहड़ बनने से बचाया गया। दूसरे चरण में दूसरे 150 किलोमीटर परिधि में, जहां भूक्षरण की मात्रा ज्यादा है, वैसा ही काम किया जाना है। इस प्रकार 25,000 हेक्टेयर जमीन सुधर सकेगी।
पर इस बीच, बीहड़ बेरोक-टोक फैलता जा रहा है। इसके लिए सरकार को ही दोषी ठहराया जाएगा। परिस्थिति की अहमियत ठीक से समझने की शक्ति उसमें नहीं है। हाल में चंबल घाटी के विकास के लिए 2000 करोड़ रुपयों की एक योजना घोषित की गई थी, पर अभी ठीक-ठीक नहीं मालूम नहीं है कि वह केवल चुनावों को ध्यान में रखकर ही तो नहीं की गई थी। पिछले अनुभव से अब कोई ज्यादा उम्मीद नहीं बनती है।
इनामी डकैत राजनारायण पंडित मारा गया
केनरा परियोजना के इंजीनियर सहित छह लोगों का अपहरण कर चर्चित हुआ राजनारायण गैंग का सरगना भिंड की देहात पुलिस ने मार गिराया। उस पर 25 हजरा रुपए का इनाम था। गुरुवार तड़के हुए मुठभेड़ में पुलिस ने उसे मार गिराया। यह डकैत दो साल पहले उस समय चर्चा में आया जब उसने भिंड जिले केनरा परियोजना से छह लोगों का अपहरण कर लिया। आगरा जिले के थाना खेडा राठौड़ के गांव सिमराई निवासी इस डकैत के एक भाई रामनारायण पंडित को ग्वालियर की पुलिस कैंसर पहाड़िया पर पहले ही ढेर कर चुकी है। यह भी इनामी बदमाश था। गुरुवार को भिंड पुलिस को राजनारायण के कछपुरा गांव में आने की सूचना मिली। पुलिस ने घेराबंदी कर उसे मार गिराया। उसके पास से एक माऊजर और 80 कारतूस बरामद किए गए।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)