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बुधवार, 22 अप्रैल 2009

किसका विकास कौन सा विकास

बीहड़ का सौदा खबर पर किसी बीएस सज्जन ने टिप्पणी की है। इस पर दो सवाल उठाए हैं। पहले सवाल का उत्तर देना में जरूरी नहीं समझता। दूसरे सवाल का उत्तर अवश्य देना चाहूंगा। बीएस का कहना है कि इससे चंबल क्षेत्र का विकास होगा। इसमें आपत्ति की क्या बात है। मुझे नहीं पता कि बीएस चंबल क्षेत्र के बारे में कितना जानते हैं। वह किस विकास की बात कर रहे हैं।चंबल की जिस भूमि का सौदा किय गया है। इसके लिए कभी विनोबा ने सपना देखा था। डकैत रहित एक बेहतर समाज का सपना। भूदान आंदोलन के अगुवा का सपना था कि बीहड़ की जमीन पर भूमिहीन काबिज हों। वह सपना तो पता नहीं कब का इतिहास हो गया। इस एक सौदे ने चंबल क्षेत्र के आधा सैकड़ा से अधिक गांव के किसानों के लिए संकट खड़ा कर दिया है। संकट जिसने उसके बीहड़ पर पुरखों से चले आ रहे प्राकृतिक अधिकार से वंचित कर दिया है। उसकी जीवनदायिनी चंबल के किनारे तक पहुंचने का उसका रास्ता उससे छीन लिया गया है। यही नहीं चंबल के दोनों किनारों पर बसे गांवों का एकदूसरे से संपर्क भी इससे मुश्किल होगा। असल में इस सौदे के तहत चंबल किनारे की किलोमीटर जमीन कंपनियों के कब्जे में आ गई हैं। यह कंपनी यहां जेट्रोपा की खेती करेंगी। जाहिर है कि इसकी रक्षा के लिए कुछ बेरीकेटिंग भी खड़े किए जाएंगे। इससे गांव के किसान का रास्ता रुकेगा। उसके पशुओं का चारागाह खत्म होगा। चंबल के दोनों किनारों पर बसे गांवों के परिवारों का एकदूसरे से रोटी बेटी का संबंध है। गरमी के मौसम में चंबल कई जगह इतनी उथली हो जाती है कि यहां से पैदल निकला जा सकता है। गांव के लोग इस रास्ते का इस्तेमाल करेंगे लेकिन इस सौदे से उनका वह रास्ता भी बंद हो गया है। सवाल है कि अगर सरकरा सचमुच इस इलाके के लोगों की बेहतरी और विकास के लिए ही कुछ करना चाहती थी तो यह जमीन किसानों को दी जाती। फिर कंपनी चाहती तो इन किसानों से जेट्रोपा की खेती करने को ठेका देती। इससे किसान को भी फायदा पहुंचा। लेकिन अब तो इस खेती से होने वाला मुनाफा धनासेठों की जेबों में ही जाएगा। रही बात यह खबर मुझे कहां से लगी तो जल्द ही इसका उत्तर भी मिल जाएगा। इस कंपनियों ने बीहड़ के इस इलाके को समतल करने का काम भी शुरू कर दिया है। और हां, एक बात और। इस इलाके के किसानों ने पीढियों की मेहतन कर बीहड़ के कुछ इलाके को समतल कर अपने दाना पानी की जुगाड़ की थी। इस जमीन पर उनका कानूनी तो कोई हक नहीं था लेकिन यह उनके जीने का साधन जरूरी थी। इस सौदे ने उनका यह साधन भी छीन लिया है।